Shubham Kumar 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक चेतना प्रकृति का उपहार, 32352 0 Hindi :: हिंदी
कोई भी प्राणी कि जब उत्पत्ति होती है, तो उसमें चेतना का समावेश होता है, हम अपनी चेतना को, साक्षात रुप से नहीं देख सकते, लेकिन उसे हम अपनी समझ कह सकते हैं_ यह प्रकृति का उपहार है, इन की श्रेणी में, हमारी भाव, हमारी क्रिया, और हमारा व्यवहार, , सबसे पहले मनुष्य में, समझ आती है, जब समझ आती है, तो भाव उत्पन्न होते हैं, जब भाव उत्पन्न होते हैं, तो हम उसे करने के लिए, तैयार हो जाते हैं, वह हमारा, स्वभाव या व्यवहार, बन जाता है, हमें करना यह होता है, कि आप अपने मन में, किन विषयों को, डालना चाहते हैं, या चिंतन करते हैं, चिंतन करने से, चेतना जागती है,( मैं यहां पर एक क्रिया डाल रहा हूं) आप इसे समझ सकते हैं_ मैं सुबह सुबह ही, बगीचे में बैठा था, मेरे पास, एक बहुत ही सुंदर, कुत्ता है, उसे मैं देख रहा हूं,) उसे मैं सुन रहा हूं उसे महसूस कर रहा, वह मेरे बिल्कुल पास है,,) अब मेरे मन में, एक विषय उभर रहा है,( वह विषय यह है कि_ यह मासूम बच्चा कितना प्यारा है, हम इंसानों से कहीं बेहतर है यह कितना भोला है,) तब मेरे मन में उसके प्रति, एक प्रेम का भाव_ उभर रहा है,( उस भाव में मैं खुद को लिपटा हुआ पा रहा हूं) और मेरे हाथ, उस सुंदर सा, बच्चे के ऊपर, चला जाता है, मैं उसे शहला रहा हूं,( और जब भी मैं किसी प्यारे से कुत्ते को देखता हूं तो उसे मैं प्यार करता हूं,( यह मेरी व्यवहार बन गई) दूसरी क्रिया_ मेरे पास एक कुत्ते का बच्चा है, मैं उसे देख रहा हूं,( अरे यहां पर सबसे पहले) यह बात बता देना जरूरी समझता हूं,( हमारे विचार) दो प्रकार के बनते हैं) एक अच्छा और एक बुरा) उस क्रिया में हमने उस कुत्ते के बच्चे के प्रति, अच्छा विचार व्यक्त किया, इस क्रिया में हम, अपने बुरे विचार को, रखते हैं, फिर देखते हैं_ यह कुत्ते का बच्चा, कितना बदबूदार है, जहां इसकी मर्जी वहां पर पेशाब कर दे_ यह कितनी गंदगी फैलाते हैं, इन को छूने पर, तो साबुन से हाथ धोना पड़ेगा,( और वह व्यक्ति) एक डंडा उठाता है) उस कुत्ते को मार कर भगाता है,) और वह जब भी किसी कुत्ते को देखता है) उसे घृणा आती है, वह उसे देखना नहीं चाहता,, इस प्रकृति में, हमारी चेतना, वैसा ही फैला है, जैसे हवा, लेकिन इस ब्रह्मांड में, जो भी उत्पन्न होता है, उनके पास_ और उनके अपने, विचार होते हैं_ अच्छा या बुरा, इंसान की प्रवृत्ति है, जब चेतना जागृत अवस्था में हो जाता है, तब हमारी प्रवृत्ति का नाश हो जाता है_ जब हमारी पर प्रवृत्ति मिट जाती है, तो 0 बच जाता है, अतः श्रीमद्भागवत गीता में, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं , जो परमपिता परमात्मा है, उसमें सद्गुण, और अवगुण, इन दोनों से परे हैं, राजस गुण, तापस गुण, सत्य गुण, इन तीनों प्रवृत्ति का नाश करके, परमपिता इन से परे हैं, अच्छाई बुराई से, भी परे हैं, उन्हें कर्म भी बांध नहीं सकता, समस्त ब्रह्मांड में, एक ऐसी ऊर्जा है, जो हमें जड़ चेतना प्रदान करती है, हमें ऊर्जा प्रदान करती है, हां प्रकृति, हमें सब कुछ देता है, हमारी चेतना भी इनका एक पुरस्कार है
Mujhe likhna Achcha lagta hai, Har Sahitya live per Ham Kuchh Rachna, prakashit kar rahe hain, pah...