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दलाल-सजा के मंडी गद्दी पे बैठकर

Ratan kirtaniya 02 Jul 2023 कविताएँ राजनितिक आज जो देश के राजनीतिक हालात है उस पे लेख है। 5516 0 Hindi :: हिंदी

सजा के मंडी -
गद्दी पे बैठकर ;
ढोंग रचा रहा पाखंडी ,
ले के सब सब से वोट -
आघात किया दे के  -
सब को चोट ;
तू भूल गया -
अपना परिचय ,
जो भी है तू -
है अपनी माँ की लाल ;
माँ को बेच के -
हुआ मालामाल ,
मिलेगा ! नल - चुम्बी सम्मान ,
नाम कमा रहे हो बेच के वतन ;
माँ की लाल -
माँ कोबेचा ! कहलाओंगे दलाल ।


गद्दी पे बैठ के ढोंग रचा है ;
ऊपर से मत देखों -
अन्दर में एक साचा है ,
तरह - तरह के भाषण -
प्रतिज्ञा करके देश को लूटा ;
बढ़ाया अपना शान ,
शैतान ने श्वेत नकाफ पहना है ;
माँ को बेचने चला -
बेशर्म को और क्या कहना है ?
अधर्मी ने धर्म का नकाफ पहना है ,
देर है अंधेर नहीं -
होगा तेरा पर्दाफाश ;
टूट जाएगा हर -
तेरे उर में बसा आश ;
बुझाने के लिए प्यास ,
गाँधी के चक्की में -
काला धागा लपेटा हैं ,
अपना करतूत छुपाने के लिए -
वार्तालाप संग नयन तेरा रोया हैं ।


मोटा सेठ बनूँ बेच के वतन  ;
बड़ा नाम होगा तेरा ;
जेब होगा गर्म -
छोड़ के लाज - शर्म -
बेचने जा रहा हूँ धर्म  ;
आज बेच दूँगा ;
पैसे के लालच में -
बालपन में पीया जिस की स्तन ,
माँ को बेचने चला -
उसकी लाल ;
भ्रष्टाचार बन गया देश का दलाल ,
माँ बेच के -
बनूँ वतन का सबसे बड़ा दलाल ।


गाँधी के चक्की में -
जो काला धागा लपेटा है ;
देख के मौका -
उसी मारा चौका ,
वतन को लूटने के लिए -
भूखे शेर की तरह झपेटा हैं ,
माँ को बेचने वाला और कोई नहीं -
खुद अपनी बेटा है ,
काला धन श्वेत हो या ना हो -
पर श्वेत चेहरा के पीछे काला रुप है ;
सब देख रहे -
समझ रहे हैं ;
पर सब चुप हैं ,
नकाफ तेरा उतर जाएगा ,
माँ को बेचने वाले -
नेताओं को दलाल ही कहलाएगा ।

माँ को बेच के -
बेटा बना दलाल ;
हे धरती माँ !
तुझे बेच खाया तेरा लाल ,
बोल के मीठा - मीठा -
उस ने देश को लूटा ;
ओ ही निकला बड़ा झूठा ,
बोलने के ढंग निराला ;
देखो देश को लूटने वाला ;
बन के जीजा - साला ;
भ्रष्टाचार के एकता में बड़ी शक्ति ,
खोया जा रहा देश भक्ति ,
क्रांति कहाँ खोया है -
दबा के सत् को -
जीजा - साला ने ;
धरती पे भ्रष्टाचार की बीज बोया हैं ,
उगल गया तेरी फसल ;
छनक उठी तेरी चाल ,
फसल ने बेचने चली वसुंधरा ,
भूल के हर सहारा ;
वसुंधरा को बेचने लगा फसल -
चला उल्टा चाल ,
बना वतन का बड़ा दलाल ;
माँ को ही बेचने चला -
देखों उस की लाल ।

धड़क उठा लाल किला ;
नयन उस का गीला ,
दस महीनें जिस ने गर्भ में पाला ,
खिला - पीला के किया यौन विस्तार ,
बन के काबिल -
माँ की सीना चीरकर कर -
बेचने चला माँ की दिल ,
माँ को बेचने वाला दलाल ;
पैसें के लिए कुछ भी कर जाऊँगा ,
जननी को बेचके -
सेठ मैं बन जाऊँगा ,
देश को बेचना है हर हाल ;
गद्दी पे बैठ के -
चलाऊँगा शकुनि चाल ;
कौन माँ कौन बहन ,
भले हो जाए -
सब के हलाल ,
माँ को बेच के उस की लाल ,
बना देश का बड़ा दलाल ।

सब समझ रहे हैं -
लँगड़ा - बहरा - गूँगा - काना ,
किस का खेत किस का फसल  ;
गद्दी पे बैठ के -
कौन चुग रहा दाना ,
देश को बना दिया खोखला ;
फूट जाएगा दिवस तेरा फण्डा ;
लड़खड़ा उठेगा तिरंगा झण्डा ,
कुछ नहीं बचा तो -
खाओं अब पाखंडा -
सड़ा गीला गोल अण्डा ,
बड़े बेशर्म -
बेच खाया लाज शर्म ,
माँ को बेच के उस की लाल ;
बना देश का बड़ा दलाल ।

  कवि रतन किर्तनिया
     छत्तीसगढ़
  जिला :- कांकेर
9343698231
9343600585

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