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तनाव से सफलता तक-उसने अपने तनाव को अपनी सफलता मे बदल दिया

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक तनाव, सफल, सफलता, लड़की, सपना, हौसला, मेहनत, कोशिश, मंजिल, लक्ष्य, साथ, गरीब 5227 0 Hindi :: हिंदी

वो जब पैदा हुई थी तो उसके पिता ने मिठाई बांटी थी. एक मैकेनिक के घर नन्ही परी ने जन्म लिया था. माँ की लाडली और पिता की दुलारी लाड-प्यार में पलने लगी. बचपन से ही घर वालों की आँखों का मोती थी. सूरत और सीरत दोनों से सुंदर. माँ से ज्यादा पिता के करीब थी क्यूँ की बेटियाँ पिता से ज्यादा प्रेम रखती हैं जबकि बेटे माँ से. दिन भर माँ के पल्लू में बंधी रहती लेकिन शाम को पिताजी के आते ही पल्लू से खुल कर पिता की गोद में किसी खिले गुलाब की तरह पुलकित हो उठती. पिता उसे इस कदर सीने से लगा कर सो जाते कि लगता ही नहीं वहां कोई बच्ची भी है. सुबह उसके जागने से पहले उसके पिताजी नौकरी पर चले जाते तो दिन भर माँ के पल्लू में बंधे हुए उन्हे खोजती. ऐसा ही चलता रहा और 2 साल बीत गए. 2 साल की उम्र में कोई बच्चा माँ का हाथ नहीं बंटाता लेकिन वो माँ के साथ छत से सूखे कपड़े उतारने जाती. खाना बनाते समय माँ को चम्मच थमाती. ये ही उसके खेल थे. एक दिन की बात है माँ के साथ छत से कपड़े ले कर आते हुए नीचे गिर गयी. पिता ने सारा घर सिर पर उठा लिया. उसे लेकर अस्पताल भागे. काफी समय तक बेहोश रही. जब होश आया तो उसे घर लाए. कुछ दिनो मे फिर से उसके खेल से घर मे चहल-पहल हो गयी. धीरे-धीरे नन्ही परी और बड़ी हुई फिर स्कूल जाने लगी. पढ़ाई में मन तो नहीं लगता था लेकिन कभी भी किसी से पढ़ाई में पीछे नहीं रही. पढ़ने बैठती तो ना जाने कौन से खयालों में खो जाती थी. और उन्ही खयालों मे सो जाती थी. झपकी टूटे तो पढ़ती कुछ रहती थी और उच्चारण किसी और शब्द का करती थीं. डॉक्टर बनने का ख्वाब था लेकिन एक मैकेनिक की बेटी थी तो अरमान बड़े रखने से पहले सोचती थी कि मेरे पिता ये कर पाएंगे या नहीं. लेकिन उसके पिता उसके सारे सपने पहले ही भांप लेते थे और उसके सोचने से पहले ही पूरे कर देते थे. परिवार की अर्थव्यवस्था कुछ कमजोर होने की वजह से पढ़ाई में आगे का नहीं सोच पा रही थी और अपनी माँ से आगे की पढ़ाई के लिए कहने पर बात को दबा देने की वजह से कुछ तनाव में रहने लगी थी. इस तनाव में उसकी हाल में चल रही पढ़ाई में भी रुझान कम होने लगा था. फिर उसने सोचा कि पढ़ाई ना सही कुछ ऐसा सीख लूँ जिससे अपने पिता को सहारा दे सकूँ. लेकिन उसके लिए भी पैसे लगते हैं. 2 छोटी बहनें और हैं. उन्हे पढ़ाने का खर्च भी तो है. ऐसे में केवल मेरे लिए तो पिताजी सारी आमदनी नहीं खर्च सकते ना. यही सारी बातें थीं जिनकी वजह से वो तनाव में रहा करती थी. इसी तनाव के बीच उसे कुछ सुझा. क्यूँ ना मै कपड़े की डिज़ाइन वगैरह बनाना सीख लूँ. इसके लिए तो मुझे कहीं बाहर जाने की जरूरत भी नहीं. औरतों के कपड़े पर जो डिज़ाइन बने होते हैं उन्हे देख कर अपनी पुस्तिका में चित्रित करने लगी. फिर उनमे कुछ बदलाव कर के दुबारा चित्रित करती. कुछ नए डिज़ाइन अपनी कल्पना से बनाती. यूँ ही करती रही और उसके पास एक पूरी पुस्तिका डिज़ाइन से भरी हुई तैयार हो गयी. अब बात यहाँ आ कर अटकी की इस डिज़ाइन का वो करे क्या? ना ही वो किसी कपड़े की फैक्ट्री में काम करती थी और ना किसी कपड़े की रंगाई वाले को जानती थी. उसकी मेहनत को वो किसे दिखाती? वो कैसे अपने डिज़ाइन लोगों तक पहुंचाती? यही सब उसके दिमाग में चल रहा था कि तभी उसे सूझा कि आज तो इंटर नेट का ज़माना है मै अपने डिज़ाइन इंटर नेट पर डालूंगी. उसने अपने डिज़ाइन को इंटर नेट पर हो रही एक प्रतियोगिता में डाला. उसके डिज़ाइन प्रतियोगिता में चुन लिए गए और वो विजेता हुई. प्रतियोगिता रखने वाली कंपनी ने उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया. उसके डिज़ाइन के लिए कीमत भी रखी लेकिन वो डिज़ाइन को बेचना नहीं चाहती थी. वो जानती थी कि मेरे डिज़ाइन ही मेरी पहचान हैं. अगर मैंने आज इन्हे बेंच दिया तो मुझे इसके लिए पैसे तो मिल जाएंगे लेकिन मेरी पहचान खो जायेगी. इसलिए उसने अपने डिज़ाइन बेचे नहीं. बल्कि उस कंपनी से कहा कि वो अपने डिज़ाइन के साथ उनकी कंपनी में भागीदारी करेगी और उसके डिज़ाइन उसके नाम से बाज़ार में जाएंगे. इस तरह से उस लड़की ने अपना नाम घर-घर तक पहुंचा कर अपने माँ-बाप का नाम रोशन कर दिखाया. जो बेटी खुद का परिचय अपने पिता के नाम से बताती थी आज वही पिता उस बेटी के नाम से जाना जाने लगा. उस पिता के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात और क्या हो सकती थी. इस बेटी ने ये साबित कर दिया कि देश की बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं. और इस तरह उसने अपने तनाव को अपनी सफलता मे बदल दिया.

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