Suraj pandit 02 Jun 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत Nature's love 11469 1 5 Hindi :: हिंदी
वर्षों से तिनका-तिनका कर, बुनी थी जिसे मैं। पेड़ की डाली पर बैठ, गाया करती थी मैं। जब,सुर्य लालिमा बिखरेते आसमा में । चीं -चीं कर जगाया करती थी, उस समय। कभी नीले गगन में उड़ के, कभी अपने बच्चों के संग, चीं-चीं कर संदेश देती थीं मैं। हर पल रखवाली करती खेतों की, यही थीं,गलती हम सब की। मैं मानती रहीं,दुनिया को परिवार। तुम अपने स्वार्थों में खोए थे। जो छाया बिखेरा करता था । आज गीर रहें हैं, जमीन पे । घोंसले थे, जिनमें कभी। अब, ज़मीन पे पड़े थे। लोगो का भाषण अमृत सा माहुर की प्याली हमें दे रहें थे। जिसमे इंसानियत ही नहीं, इंसानियत की यूं बात कर रहें थे तड़पते रहें बेघऱ हो कर। पिंजरे में रख कर,इंसानियत दिखा रहें थे। क्यों इंसान इतना गीर गए? हमारा घर छीन के, खुद का घर बना रहें। आज भी मैं शांत हूँ,क्षण भर की खुशी में। जी रही हूँ आज भी, इंसानियत की आस में। -----सूरज पंडित