टीआरपी घोटाला-2
ब्राडकास्ट आडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) ने बड़ा फैसला करते हुए कहा है कि टीवी रेटिंग जारी करनेवाली इस संस्था ने सभी भाषाओं-हिंदी, क्षेत्रीय व अंगे्रजी के समाचार चैनलों की साप्ताहिक रेटिंग जारी करने पर फिलहाल 8 से 12 हफ्तों तक रोक लगा दी गई है। इसका मकसद मापन के वर्तमान मानकों की समीक्षा करना और उनमें सुधार करना है।
बार्क इंडिया के चेयनमैन ने कहा है,‘‘यह रोक इसलिए जरूरी था, ताकि उद्योग और बार्क मिलकर अपने पहले से ही कड़े प्रोटोकाल की समीक्षा कर सके और उसमें सुधार कर सके। इससे उद्योग विकास और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए सहयोग केंद्रित कर सकेगी।
उधर, मुंबई पुलिस ने 11 अक्टूबर को रिपब्लिक टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विकास खनचंदानी और अन्य से गहन पूछताछ की है। मुंबई पुलिस को शंका है कि गिरफ्तार व्यक्तियों में-से एक व्यक्ति ने चार या पांच व्यक्तियों से अपने बैंक खाते में एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्राप्त की है।
इधर, रिपब्लिक टीवी का दावा है कि टीआरपी घोटाले में बार्क ने उसका नाम नहीं लिया है, लेकिन मुंबई पुलिस रिपब्लिक टीवी को बदनाम करने के लिए बगैर सबूत इस मामले में घसीट रही है।
रिपब्लिक टीवी का यह भी कहना है कि मुंबई पुलिस ने उससे खिलाफ अंग्रेजों के जमाने का कानून इस्तेमाल कर संविधानप्रदत्त ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ को दबाने का प्रयास की है।
उसने रिपब्लिक टीवी से चार साल के खर्च का व्यौरा मांगा है। यही नहीं, उसके संपादकों सहित 1000 पत्रकारों पर प्राथमिकी दर्ज कर पूछताछ की जा रही है कि आपकी जानकारी का स्त्रोत क्या है? इतने बड़े पैमाने पर पत्रकारों पर एक साथ एफआइआर दर्ज करना, पत्रकारिता के इतिहास में यह पहली घटना है।
महाराष्ट्र के इस फैसले की चहुंओर कटु आलोचना हो रही है। केंद्रीय वित्तमंत्री ने इसे कांग्रेस का डीएनए में होना कहा है, तो अन्य केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों ने इसे आपातकालीन घटना की याद दिलाना कहा है। कंगना रनावत ने इसे ‘कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली’ कहकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। वहीं साधु-संतों ने इसका पुरजोर विरोध कर सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की बात कही है।
सुप्रीमकोर्ट ने रिपब्लिक मीडिया समूह से कहा है कि टेलीविजन रेटिंग पाइंट हेराफेरी को लेकर मंुबई पुलिस द्वारा दर्ज मामले में वह बांबे हाईकोर्ट जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें उच्च न्यायालयों में भरोसा रखना चाहिए।
उधर, हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका मामले में इलेक्ट्रानिक मीडिया ट्रायल पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि जब आप ही जांचकर्ता, अभियोजक और जज बन जाएंगे, तब अदालतों की क्या जरूरत है?
अदालतों के ऐसे फटकारों के बावजूद टीवी चैनलों द्वारा टीआरपी के लालच में मीडिया ट्रायल की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा तथा आस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों में मीडिया ट्रायल के नियमन के लिए कानून है, पर हमारे यहां वैसा कानून नहीं है।
वहीं, सूचना प्रौद्यागिकी पर संसदीय स्थायी समिति को अधिकारियों ने जानकारी दी है कि टीआरपी मापने की वर्तमान व्यवस्था वैज्ञानिक नहीं है। इसमें हेराफेरी की गुंजाइश है। इसकी वर्तमान प्रणाली दर्शकों की वास्तविक तस्वीर पेश नहीं करती। कारण कि इसमें आंकड़े एकत्रित करनेवाले केंद्र बहुत कम हैं।
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