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वो सुधर गया- एक बिगड़ा हुआ चोर से एक मदद करने वाला लड़का बन गया और सुधर गया

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ बाल-साहित्य चोर, बच्चा, चोरी, डर, सुधरा, मदद, गलती, गलत, चुराया 6631 0 Hindi :: हिंदी

सतीश बचपन से बहुत सीधा लड़का था. माँ - बाप के संस्कार उसके व्यवहार और व्यक्तित्व मे झलकते थे. उसे सिखाया गया था कि हमें कभी किसी से झूठ नहीं बोलना चाहिए, किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, चोरी नहीं करनी चाहिये, हराम का नहीं खाना चाहिए, किसी को बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए, किसी को चोट नहीं पहुँचाना चाहिये और भी बहुत सी अच्छी - अच्छी बातें. हर माँ - बाप अपने बच्चे को ऐसी ही अच्छी बातें सिखाते हैं और सतीश को भी सिखाई गयीं. सतीश इन बातों को हमेशा ध्यान में रखता था. कभी भी ऐसा कोई गलत काम नहीं करता था जिससे उसके माँ - बाप के संस्कारों पर कोई उंगली भी उठा सके. सतीश पढ़ने - लिखने मे बहुत अच्छा था. स्कूल वालों ने उसे अगली कक्षा में कर दिया. वो मन लगाकर पढ़ाई करता लेकिन रोज एक बात के लिए उसे डांट पड़ने लगी थी. उसकी पेंसिल, रबर वगैरह कोई रोज उसके बस्ते से निकाल लेता था और घर आ कर रोज पिताजी से नया लाने को कहता. इसी बात के लिए कभी तो उसे मार भी पड़ जाती थी. जो लड़का उसके बस्ते से सामान चोरी करता था उसे सतीश कभी पकड़ नहीं पाया क्यूंकि छुट्टी के समय वो लड़का सतीश को रोज नज़र मे रखता था और चोरी को अंजाम देता था. सतीश ने एक दिन सतर्कता बरती और पेंसिल वगैरह को बस्ते में किसी और जगह रख दिया. अगले दिन जब चोर लड़के ने बस्ते में हाथ डाला तो उसे वहाँ कुछ हाथ नहीं लगा और खोजने में थोड़ी देर लगी कि तभी सतीश को एहसास हो गया कि चोर ने बस्ते में हाथ डाल दिया है. सतीश अचानक से घुमा तो उसने चोर को पहचान लिया. तब तक चोर दूसरी ओर से भाग निकला. सतीश उससे लड़ाई नहीं करना चाहता था इसलिए उसने उसे जाने दिया लेकिन अगली बार से ऐसी वारदात ना हो इसके लिए सतर्क हो गया. उसने उस दिन सोचा कि ऐसे भी लोग हो सकते हैं जो किसी और का सामान चोरी करते हैं. उसने सोचा कि मै तो ऐसा कभी नहीं करूंगा. 
कुछ साल बीते. अब सतीश चौथी कक्षा में था. उसके कई दोस्त थे. सीधा होने की वजह से उसकी दोस्ती किसी से भी बहुत जल्दी हो जाती थी. उसके दोस्तों में कुछ हंसमुख थे तो कुछ चिड़चिड़ापन रखने वाले भी थे. कुछ होशियार तो कुछ धूर्त भी थे और कुछ उसकी तरह साफ मन के भी थे. वो अपने जैसे होशियार और समझदार दोस्तों के साथ ज्यादा समय रहता था और उनके साथ ही पढ़ता और खेलता था. उनके लिए दुकान से एक ऐसी गोली जैसी मिठाई ले आता था जो खेलने के लायक भी थी और खाने मे मीठी भी थी. कुछ देर वो लोग उनसे खेलते फिर खा लेते. सतीश उन गोलियों को दोस्ती की गोली कहता था. उसके दोस्त भी उसे खा कर खुश होते थे. पांचवीं कक्षा में आकर सतीश के अच्छे वाले दोस्तों ने स्कूल बदल दिया और अब सतीश के पास केवल धूर्त और मस्ती खोर दोस्त ही बचे रह गए थे. एक दिन सतीश स्कूल पहुंचा और उसके दोस्त वहीं उसका इंतज़ार कर रहे थे. सतीश को पेन्सिल लेनी थी क्यूंकि उसकी पुरानी पेन्सिल छोटी हो गयी थी. उसने दुकान से पेन्सिल लिया और जल्दी के चक्कर में अपने एक दोस्त से उसके बस्ते में रखने को बोला. दोस्त ने कहा कि देखो मै रख रहा हूँ बाद में मुझसे मत कहना कि मेरी पेन्सिल कहाँ गयी. उसने सतीश के सामने पेन्सिल बस्ते में रखी लेकिन कब निकाल लिया सतीश को खबर नहीं पड़ी. जब सतीश कक्षा में लिखने के लिए बस्ते में पेन्सिल खोजने लगा तो वो वहां थी ही नहीं. उसने उस लड़के से पूछा कि मेरी पेंसिल कहाँ है तो लड़का बोला कि मैंने तो तुम्हारे सामने ही बस्ते में रखी थी अब मै नही जानता कि तुमने कहाँ गुमा दी. उस दिन सतीश को एक बड़ा झटका लगा. जिस पर भरोसा कर के उसने पेंसिल रखने को कहा उसने ही चोरी कर ली लेकिन उसे साबित ना कर पाने की वजह से सतीश चुप रह गया और किसी दोस्त से उसकी पुरानी पेंसिल मांग कर काम चला लिया. लेकिन उस दिन सतीश के मन में कुछ गलत धारणाएं घर कर गयी थीं. उसने सोचा कि ये लोग पेंसिल, रबर वगैरह खरीदते नहीं हैं बस चोरी कर के अपना काम निकाल लेते हैं तो क्यूँ ना मै भी करूँ. फिर उसे अपने घर से सीखे हुए संस्कारों का डर हुआ कि पकड़ा गया तो बहुत पिटुंगा. उसके मन में चोरी करने का विचार तो आ ही गया था तो पीछे कैसे हटता. अच्छी बातों की जगह बुरी बातें मन मे जल्दी बैठती हैं इसलिए उसने सोचा कि पहले इनसे ये कला सीखता हूँ. उनसे घुलने - मिलने लगा और चोरी करना सीख लिया. पढ़ाई के दौरान अल्पविराम मे जब सारे बच्चे खाना खा कर थोड़ा टहलने जाते उस बीच सतीश और बाकी लड़के बच्चों के बस्ते से चोरी करते. धीरे - धीरे उसके मन से डर निकल गया क्यूंकि वो एक बार भी पकड़ा नहीं गया. उसे लगने लगा कि चोरी एक काम की कला है. अब तो सतीश स्कूल के साथ - साथ दुकान से भी पेन वगैरह चोरी करने लगा. उसका डर और निकलता गया. एक दिन जिस दुकान से वो पेन चोरी करता था उसे किसी ने बता दिया कि सतीश ने तुम्हारे दुकान से पेन चोरी किया है. जब सतीश दुकान पर पहुंचना तो दुकानदार ने उसे पकड़ लिया और खूब डांटा लेकिन उसके पिता की इज्जत के लिए ये बात आगे ना बढ़ाते हुए उसे समझा कर छोड़ दिया. सतीश इस बात से बहुत नाराज़ हुआ कि किसी ने उसकी शिकायत की है लेकिन ये नहीं जानता था कि किसने, तो चुप रह गया.
सतीश के स्कूल में 2 पाली में पढ़ाई होती थी और पहली पाली छूटने से पहले दूसरी पाली के बच्चे भीड़ लगाकर पहली पाली की छुट्टी का इंतज़ार करते थे. सतीश दूसरी पाली में था. भीड़ में खड़ा रोज की तरह सब की नज़र से बचकर बच्चों के बस्ते से पेंसिल, रबर चोरी कर रहा था और फिर आगे बढ़ जाता था. इसी तरह वो अंत मे एक लड़की के पीछे पहुंचा. लड़की ने अपनी पेंसिल बस्ते में बिल्कुल ऊपर रखा हुआ था और पेंसिल बाहर ही दिख रही थी. सतीश ने सोचा कि ये तो बहुत आसानी से चोरी हो जाएगी और उसने ऐसा ही किया और पेंसिल निकाल ली. लेकिन सतीश के मन में ये विचार आया कि जब मेरे बस्ते से मेरे दोस्त ने पेंसिल चोरी की थी तब सतीश को लिखने में कितनी परेशानी हुई थी. अगर उस दिन किसी ने उसे पुरानी पेंसिल ना दी होती तो वो कैसे लिखता. बस यही विचार कर उसने सोचा कि आज इस लड़की को भी यही परेशानी होगी ना. बस इतना विचार आते ही सतीश ने उस लड़की को उसकी पेंसिल थमायी और उसे डांटते हुए बोला कि इसे बस्ते के अंदर रखा करो वर्ना कोई चोरी कर लेगा तो कैसे लिखोगी. लड़की ने पेंसिल लिया और उसे धन्यवाद करते हुए रख ली. सतीश के मन में एक अलग ही खुशी हुई कि उसने किसी को अच्छी सीख दी है और एक अच्छा काम किया है. सतीश ने उस दिन ये ठान लिया कि आज के बाद चोरी नहीं करूंगा और हर किसी की जितनी हो सके मदद करूंगा. इस तरह से सतीश एक बिगड़ा हुआ चोर से एक मदद करने वाला लड़का बन गया और सुधर गया.

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