Santosh kumar koli 17 Jul 2023 कविताएँ धार्मिक रंगभूमि (महाभारत) भाग- 2 7716 0 Hindi :: हिंदी
दुर्योधन सोचा मन में, मुझे इसी की तलाश है। है भुज, बाण में जान, काट सकता अर्जुन के बाण, यह अर्जुन का काल है। बोला दुर्योधन, योद्धा के अपमान से, मैं शर्म से मरा जाता हूं। मेरे मित्र कर्ण को, सभा समक्ष, मैं अंगराज बनाता हूं। दोनों मित्र मिले गले, कर्ण सिर दुर्योधन के कंधे धर दिया। कर्ण ने निष्ठा, जीवन के साथ, मृत्यु भी मित्र के नाम कर दिया। कर्ण अर्जुन यों खड़े, ज्यों दो सिंह बंटवारे सीमा क्षेत्र खड़े। डगमग- डगमग डोले दिग्गज, जब रक्तिम नेत्र लड़े। अर्जुन अस्त्र प्रदर्शन से, समां बंधी, सांस रूंधी सृष्टि छाती धड़क उठी। तड़के तरकश के तीर अनी, प्रत्यंचा तनी, कर्ण भुजा फड़क उठी। कर्ण का कर पड़ा प्रत्यंचा पर कि, एक तडित्- सी कौंध गई। टंकार टकराई अंबर से, पृथ्वी गति की आंखें मुंद गई। कर्ण कला कौशल की खनकार, अर्जुन से ज़्यादा खनक गई। बात और भी ज़्यादा बिगड़ गई, जब बात ब्रह्मास्त्र पर ठन गई। सूरज समझा समय की धार, कर्ण का सवाया पाला है। मुंह छिपाया अस्ताचल में, आज कुछ बुरा ही होने वाला है। सूर्यास्त से दो शूरवीरों के, प्रलय पाले मिट गए। सृष्टि से सन्नाटा हटा, धर्ष घटा, भय के बादल छंट गए। आज विकल दृश्य टला, कल क्या होगा भला? एक कसक छोड़ गया। अर्जुन से ज़्यादा द्रोण के, दंभ मंडित मन को मरोड़ गया।