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Santosh kumar koli ' अकेला'

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My Articles

उसके जूड़े का बनूं, यदि मैं बन फूल सकूं। रेशमी जुल्फ़ों की महक से, अपनी महक भूल सकूं। आंसू बनूं उसकी आंखों का, नीली आंखों में घर कर सक read more >>
यह अनुभवियों का कहना, सबसे भला कभी नहीं रहना। सबसे भले के चक्कर में, खुद का भला जाते भूल। सबसे भले रहने वाले के, पीछे उड़ती राख- धूल। read more >>
दूसरे ग्रह पर आ गए, लगता घुसते ही मोहल्ला। सिंह, शर्मा नहीं, ये हैं नाथ्या, पांच्या, कल्ला। हर रोज़ गाली- गलौज, बरतन फेंकने का हल्ला। read more >>
तुंग श्रृंग पर गिरे, निरंक बादल बगुले से। फाहे से धवल, निखरे- निखरे धुले -धुले से। दुग्ध फेन में, उठते- गिरते बुलबुले से। उबले हुए से read more >>
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