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Kishor Kumar Bhardwaj

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हरियाली संग संवत्सर बिते फागुन मास संन्यास के पतझड़ के बाद जंगल दहक रहा जब खिले फूल पलाश के जब वन-उपवन सुखें हो जल की हो सबमे अमिट प्यास read more >>
*"वक़्त की स्याही में लिपटी ज़िंदगी"* किसी ने आज हंसकर पूछा, "कौन है वो.?" हम भी मुस्कुराए, मगर जवाब यूँ दिया— "किसी के कानों की बाली में जड़� read more >>
घाट का एक ख़ामोश पत्थर हूँ मैं, मैंने नदी के हज़ार नखरे देखे हैं… कभी लहरों की हल्की छुवन, तो कभी बाढ़ के ग़ुस्से देखे हैं… कभी किसी न� read more >>
नील गगन के नीचे, जलधारा के बीच, एक नाव चली, बहती रीतम - रीत। नाव की देहरी पर बैठी कोई, मानो स्वप्नों से आई जलपरी। नयनों में गहराई, लहरों-� read more >>
शक्ति के प्रेम में शिव भी बदल गए थे, वैरागी से किसी के हमसफ़र बन गए थे। जो ध्यान में लीन, विरक्त थे सदा, प्रेम के स्पर्श से शक्ति के हो गए read more >>
रे मनुष्य हो सावधान! वन्य जीवों का करो सम्मान !! मानवता हेतु शर्म की घड़ी है प्रश्नों संग पशु दुनिया खड़ी है काट डाले आश्रय वन सारे न� read more >>
टहनियों के बीच से झांकता परिंदा, बाहर के माहौल को भांपता परिंदा, घोसले के मोह से न जागता परिंदा, पर भूख के पीछे भीतर भागता परिंदा। ज्य read more >>
रश्मों-रिवाजों से बगावत ही सही., ओ नहीं मेरी पर उनसे मोहब्बत तो है., इश्क में हम हार भी रहे है हम जीत भी रहे है., ना हम दिख रहे है ना उन्हें � read more >>
अनमोल हैं ये साँसें चूकना मत , बहुत बार मौके मिले हैं इस जन्म में मत चूकना । आती श्वांस में नाचता जीवन और जाती श्वांस में हँसती मौ� read more >>
प्रेम की स्वप्निल डगर पर दो तरफ हम एक पथ पर पुलक चलते, समानांतर पर कभी जुड़ने की कोई आस न हो प्रेम हो, पर मिलन की कोई प्यास न हो! एक सखी � read more >>
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