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Ritvik Singh

Ritvik Singh

Ritvik Singh

@ ritvik-singh
, Uttar Pradesh

एक हकीम शहर में ऐसा भी है ! जो सारे अमर की दवा कलम बताता है ....

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My Articles

तुम जो इतना सजती सवरतीं हो इश्क़ है क्या किसी के लिये अच्छा रुको रहने दो ये चन्द बातें कल के लिये तेरे हाथो की वो खूबसूरत मेहँदी बता ज read more >>
ये ज़िंदगी अब हमसे ठिसक जाने को कहती है जो चादर पैरो पे ढकी है वो अब खिसक जाने को कहती है हम सबको तवज्जोह देते फिरते है ए-ऋत्विक पर उसक read more >>
इस बड़े शहर की भीड़ तूँ ,मेरे अधूरे ख़यालों की रीढ़ तू कभी सूखे में गिरी बारिश तूँ , तों कभी ख़ाली हवेली की वारिश तू कभी पहाड़ों की ठंडी read more >>
समझोगे तो बच जाओगे कि तुम बस बदलो की भाषा समझो बारिश से खुद बच जाओगे तूम अपने यार की चुप्पी को समझो रिश्ते बिखरने के डर से बच जाओगे read more >>
तुम ज़ो अब यूँ किसी की बाँहों में आये हो कभी चाँद को एक टक देखना तो कभी तारों से मुँह मोड़ना कभी तुम्हें भुलाने की कोशिश तों कभी थोड़ा read more >>
मैं शम्भु हूँ तों नाथ भी मैं ही हूँ मैं सत्य हूँ तों शिव भी मैं ही हूँ मैं अगर मृत्यु हूँ तों जीवन भी मैं ही हूँ मैं ही अपार समय हूँ तों read more >>
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