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Rupesh Singh Lostom

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मैं फूल हूँ काटों से लिपटा रहता हूँ कही भी कही भी हर मौसम में मिलता हूँ मैं कोमल हूँ और नाजुक भी मैं फूल हूँ मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद read more >>
मैं फूल तू काटा फिर भी दोनों आधा आधा तू मुझ से दुखी दुखी फिर भी रक्षा करता हैं मैं कोमल नाजुक कली तू निठुर काटा फिर भी दोनों आधा आध read more >>
तू रुत होती धुप होती रंग थोड़ा रूप होती तू गुल होती गुलशन होती फूल और फूलबड़ी होती दो बून्द महक थोड़ा सा खुशबु होती तो कही गुलदान में ब read more >>
खामोस नजर से क्या कहु बिन बोले ही सब कुछ कहती हैं न राज छुपाती सिने में न रूप दिखती दर्पण में खामोस नजर से क्या कहु कहने को कई बात है read more >>
पता नहीं भाग रहे हैं बस भाग रहे किस लिए पता नहीं क्या चाहिए क्यों चाहिए किस के लिए पता नहीं सफर नया लोग बही सब दौड़ रहे बस दौड़ रहे न मं read more >>
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