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Rupesh Singh Lostom

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तू फूल बनके खुशबू फैलाती रहे मैं कटा ही सही तेरे बाग़वा का तू काली सी मुस्कुराती सदा खिल खिलाती रहे बहार बनके के यु ही गुलशन महकाती read more >>
तलाश कुछ बक्त गुजर गए खुद को जानने में कुछ समय निकल गए गलतियों को मानने में और कुछ बक्त गुजर गए खुद को तराशने में और जो बाकि बचा नि read more >>
अंगारों पे चलने की आदत गई नहीं तुम्हारी तभी तो आज भी ख्वाइशों के अमवार सजाये बैठे हो कलेज़े में आग लिए अब भी फिरती हो तभी तो आज भी जला read more >>
जब तू उमड़ती हैं इश्क़ के ज्वार बनके ज़िस्म बरस पड़ता हैं ताजा फुहार बनके रोम रोम तरसता हैं तुझ में सराबोर होने को थोड़ा मुझे भी भिगो देती read more >>
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