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Trishika Srivastava

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मैं ये नहीं कहती हूँ कि बाकी भाषाएँ नेक नहीं अंग्रेजी बोलना अच्छा है पर हिन्दी त्यागना ठीक नहीं —त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ read more >>
मिल जाए वक़्त ज़रा सा अगर तो लौट आना कभी अपने घर तुम्हे याद कर अक्सर रोता है आँगन में खड़ा वो बूढ़ा शज़र — त्रिशिका श्रीवास्तव ‘ read more >>
ज़िम्मेदारियों का बोझ कंधा तोड़ देता है कम उम्र में बाप गर दुनिया छोड़ देता है — त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ read more >>
(1). सच कहा था तुमने कि इस जहाँ में सारे पत्थर हैं किसी को ज़ियादा अहमियत दो तो आंकते ख़ुद से कमतर हैं (2). ज़रा महसूस तो करो मेरी तन्हाई की पी read more >>
(1). खूबसूरत है जहाँ, मौसम रंगीन है न जाने क्यों फिर भी, मेरा दिल ग़म-गीन है (2). नवंबर के महीने में मुझे छोड़ गया था हाँ! वो मुझसे सारे नाते तोड़ read more >>
त्याग के सारी भाषाएँ, बस ब्रज की बोली बोलूँगी। श्याम तुम्हारी नगरी में, मैं जोगन बन कर घूमूँगी। निस-दिन तेरी मुरली की, मुझे तान सुनाई read more >>
बहुत कोशिश की मैंने ता'अल्लुक सुधारेने की मगर उसने तो कसम खाई थी बात बिगाड़ने की हज़ार मिन्नतें की मैंने उसने इक न मानी क्योंकि उसकी त read more >>
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