Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

एक खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी

Poonam Mishra 28 May 2023 कहानियाँ समाजिक एक पिता का दर्द 7314 0 Hindi :: हिंदी

इस कहानी की पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक है कृपया इसे किसी घटना से जोड़ने का प्रयास न करें लेखिका की यह दूसरी कहानी है जो मैंने अभी अभी लिखना शुरू किया है कहानी को कहानी के रूप में ही  पढ़ें एवं अपने विचार 
--- अवश्य दें----'-----------'



कहानी का पहला भाग,,,,,




मेरी शादी के करीब बन 4 साल

 हो गए हैं और मैं एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी मेरी एक छोटी सी नन्ही परी भी है जो अभी 2 महीने की है मैं और राघव  उससे बहुत प्यार करते हैं माँ  का तो वैसे रोज ही फोन आता है  आज अचानक पता नहीं  माँ ने बहुत ही दुखी मन से फोन किया और कहा कि आ जाओ !तुम्हारे पापा तुम्हें याद कर रहे हैं !
उनकी तबीयत ठीक नहीं है ।
मैं यह सुनते ही अपना सामान पैक करके वाराणसी के लिए खाना हो गई।
 रास्ते भर मै ट्रेन में सोचती रही कि पापा तो मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूं l
 फिर भी न जाने क्यों ?माँ हम दोनों के बीच में एक दूरी हमेशा से बनाए रखने का प्रयास करती रहीl
 इस बात को मैं समझ नहीं पाई आखिर क्यों ?
जबकि मेरी माँ पापा का पूरा ख्याल रखती थी ।
और मेरा भी पूरा ख्याल रखती थी और पापा भी मुझे बहुत प्यार करते थे फिर भी  माँ एक डिस्टेंस में रखना चाहती थी।
 मुझे और मेरे पापा को मैं जैसे-जैसे बड़ी होती गई इन सब बातों को समझती गईl
 लेकिन पापा का प्यार मेरे प्रति बहुत ही ज्यादा था मैं शादी के बाद अपनी नई घर में रच बस गई मुझे एक बहुत ही  प्यार करने वाला पति मिला इसके साथ में अपनी एक खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी l
जैसे-जैसे ट्रेन वाराणसी के पास पहुंचती गई मन में न जाने क्यों?
 तरह-तरह के ख्याल आते गए माँ ने मुझे फोन पर बताया था कि बगल में मिश्रा अंकल के घर से चाबी लेकर के सामान घर पर रख देना और हॉस्पिटल चली आना क्योंकि हम और पापा दोनों हॉस्पिटल में ही है  । मैं अपनी छोटी बच्ची को लेकर की
मैं वाराणसी स्टेशन से उतर कर सीधे  मैं मिश्रा अंकल के घर जाकर उनसे चाबी लिया और चाबी लेकर जैसे मैं बाहर निकलने लगी तब से मुझे आवाज सुनाई दी कि अंकल आंटी आपस में बात कर रहे थे और कह रहे थे  "अगर अपनी बेटी होती  तो इतनी देर" में इतने दिन के बाद' अपने पापा से मिलने थोड़ी ना आती ?
रमेश तो कितना प्यार करता है इन दोनों  माँ ;बेटी ;को  मुझे यह सुनकर के एक अजीब सा झटका लगा!
 मैं समझ नहीं पा रही थी यह दोनों आपस में क्या बात कर रहे हैं ?
मेरा मन हुआ कि दौड़कर, जाकर मैं उन लोगों से पूछे कि अपनी बेटी मतलब मैं किसकी बेटी हूं  ?
क्योंकि मेरी माँ की वह बहुत ही अच्छी दोस्त थी और मेरी माँ उन पर बहुत विश्वास करती थी क्योंकि मैं बचपन मैं कभी-कभी भी उनके घर पर रहा करती थी। इसलिए मैं उनसे किसी तरह का जवाब सवाल नहीं करना चाहती
।
 मैं उन्हें भी अपनी माँ की तरह ही सम्मान देती थी ।
 और मैं चाबी लेकर के अपने घर पहुंचकर गेट खोल करके सीधे अपने घर के अंदर पहुंच गई मेरे कानों में उनकी आवाज बार-बार गूंज रही थी आखिर अपनी बेटी का क्या मतलब हुआ न जाने क्यों? मन में यह ख्याल करते-करते मैं पापा के कमरे का दरवाजा खोलकर उनके कमरे में जाने लगी।
 उस कमरे में जाने कि मुझे ज्यादातर मना किया जाता था  क्योंकि मेरे पापा किताबे लिखते हैं पढ़ते लिखते थे और वह टीचर हैं ।इसलिए उनका पढ़ना लिखना काम था और माँ की सख्त हिदायत थी कि पापा के रूम में जाकर किसी सामान को नहीं छूना है ।
तो मैं बहुत कम ही पापा के रूम में जाती थी माँने कुछ सामान पापा के मंगवाए थे ।
आज न जाने क्यों मेरा मन बहुत विचलित हो रहा था मैंने पापा के रूम का दरवाजा खोला  पापा के रूम में जाकर मैं सोचने लगी  मैं कौन हूं ?पापा कौन है? मैं जाकर पापा के रूम में उनके चेयर पर बैठ कर इधर-उधर देखने लगी। मैंने देखा कि पापा की एक डायरी टेबल पर थी मैंने अक्सर   देखा था कि पापा रात में सोते समय। अपनी डायरी में कुछ लिखते हैं उसके बाद अपने रूम में सोने चले जाते हैं ।उनकी डायरी को छूने का किसी को भी अधिकार नहीं था l वह डायरी लिखते थे
माँ भी उनकी डायरी को नहीं पढ़ती थी मुझे भी उस डायरी को छूने का हक नहीं था न जाने क्यों? मन में इच्छा हुई कि पापा की डायरी मैं पढ लु आज क्योंकि? मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे मन में न जाने कैसे-कैसे विचार आ रहे थे !कांपते हुए हाथों से मैंने पापा की डायरी उठाई !और पढ़ना शुरू कर दिया !न जाने क्यों दिल में इतना शोर हो रहा था मैंने देखा कि उन्होंने डायरी  हर दिन की बारे में कुछ न कुछ लिखा था।
 जिसमें उन्होंने मेरी माँ से मिलने का प्रथम दिन से लेकर के शुरुआत किया था।
 मेरी मां का नाम पूनम है और वह देखने में बहुत ही खूबसूरत है पापा ने उनकी खूबसूरती का बहुत ही वर्णन किया है अपनी डायरी में कई कविताएं गजल शायरी उनकी खूबसूरती पर मैंने देखा कि उन्होंने लिख छोड़ा था मुझे न जाने क्यों यह सब चीजें पढ़ने में कोई भी रुचि नहीं थी?
 मैं बस अपने सवालों का जवाब ढूंढना चाहती थी .
अचानक मेरी निगाह एक पेज पर पड़ी जिसको मैं पढ़कर ठहर सी गई,,,,,,,,,,,,,,,





शेष भाग अगले दिन 

अभी तक आपने पढ़ा की गुड़िया को अपने पापा की डायरी मिली शेष भाग,,,,,,
,,,,,,,,    ,


कहानी का दूसरा भाग 



----------


तारीख 20 दिन रविवार
आज मैंने पूनम से शादी करने का निर्णय ले लिया है ?
मैं कई सालों से पूनम को जानता हूं !मैंने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का निर्णय ले लिया है.

 क्योंकि मैं अपने परिवार में एक इकलौता बेटा हूं ;स्वाभाविक है  माँ-बाप मेरे इस निर्णय का स्वागत करेंगे ।
परंतु यह क्या? मैंने जब अपने माँ बाप को बताया कि मैं एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता हूं जिसकी एक 6 माह की बेटी भी है तो माँ-बाप समेत परिवार के सभी सदस्य मेरे इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं ।
वह नहीं चाहते कि मैं किसी ऐसी लड़की से शादी करूं जो एक बच्चे की माँ है।
 मैं देखने में इतना खूबसूरत पढ़ा लिखा और टीचर हूं तो मैं ऐसी लड़की से शादी क्यों करूं? जबकि मेरे पास हजारों ऑप्शन है मेरी माँ मुझे बार-बार समझायें जा रही है ।तुम अपने निर्णय पर सोच लो बाद में पछताना नहीं, तुम मेरी एक इकलौती संतान हो। मैं तुम्हारे इस निर्णय के खिलाफ हूं ।
मुझे ऐसी लड़की बहू के रूप में नहीं चाहिए। जिसकी पहले से ही एक बेटी हो परंतु मैं तो पूनम के प्यार में अंधा हूं ।पूनम के साथ-साथ उससे जुड़े रिश्तो को भी मैं उतना ही प्यार करता हूं। 

तारीख 21
 पूनम ने मुझे अपने बारे में सब कुछ बता दिया था जब मैंने उसे अपना निर्णय सुनाया था।
 तो जब मैंने पहली बार पूनम को देखा था तभी उसने बताया था कि आप मुझसे दूर ही रहे इतना ज्यादा मेरे करीब आने की कोशिश मत करिए ।
क्योंकि मैं एक बच्ची की माँ हूं आपके लिए तो और भी बहुत सी लड़कियां मिल जाएंगी परंतु मैं अपनी बेटी की एकमात्र सहारा हूं।
 उसने बताया कि मेरे पति को कैंसर था जिस वक्त उनकी मृत्यु हुई उस समय मेरे गर्भ में 1 माह की मेरी गुड़िया थी लोगों ने इसे गिराने के लिए कहा ।
परंतु मैं इसके साथ ही जीवन में आगे बढ़ने का निर्णय कर लिया। शादी के 3 वर्ष पश्चात ही मेरे पति की मृत्यु हो गई इसलिए ससुराल वाले मुझे बहुत पसंद नहीं करते थे।
 उनकी उपेक्षा के शिकार से परेशान होकर मैंने अलग रहने का निर्णय कर लिया मेरे साथ  इतनी बड़ी दुर्घटना से दुखी होकर कुछ समय पश्चात ही ससुराल वालों की उपेक्षा के कारण माता-पिता ने मुझे अपने पास बुला लिया ।
मैं अपने माता-पिता के पास रहने के लिए मायके में  आ गई परंतु मैंने महसूस किया कि माता-पिता मुझे देखकर बहुत परेशान होते थे। शायद मेरे दुख से दुखी होने के कारण ,
कुछ ही समय पश्चात जब मेरी गुड़िया ने जन्म लिया उसके कुछ समय पश्चात मेरी माता का देहांत हो गया उसके बाद पिताजी भी इस दुनिया में नहीं रहे ।
मैं अपने भाई भाभी के साथ मायके में रहती थी परंतु मुझे यहां पर हमेशा यह महसूस होता था कि मैं उनके परिवार के सदस्य नहीं हूं ।वह सभी मेरे साथ अलग सा व्यवहार करते थे। परंतु मुझे अपनी बेटी को पाल पोस कर बड़ा करना था इसलिए मैं उनसे अलग नहीं हूं और यही एक प्राइवेट स्कूल में मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया। और अपनी बच्ची की परवरिश पर ध्यान देने लगी ।अभी आप मेरी जिंदगी में आए हैं और आप मुझसे शादी करना चाहते हैं इसलिए मैं आपको अपने अतीत के बारे में सब कुछ बता देना चाहती हूं ।
ताकि आपको अपने इस निर्णय पर बाद में शर्मिंदा ना होना पड़े मैं अपनी बेटी को बहुत ही मुसीबतों के बीच से निकाल कर बाहर लाई हूं ।अब मैं उसे जीवन भर उसके साथ रहूंगी मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकती इसलिए मैंने निर्णय किया है अगर आप मुझसे शादी करना चाहते हैं तो आप मेरी बेटी को भी स्वीकार करें ।

तारीख 22
क्योंकि पूनम अपनी बेटी को लेकर बहुत ही इन सिक्योर थी पर किसी पर भी अपनी बेटी के लिए विश्वास नहीं करती थी। मैंने तो बस प्यार किया था मुझे पूनम के साथ-साथ उसकी बेटी भी स्वीकार थी  मैंने उससे कहा कि यह तो और भी अच्छा है कि मुझे एक बेटी भी है मैं बहुत खुश हूं तुम मेरे साथ जीवन में आगे बढ़ सकती हो तुम्हें कभी भी अपने इस निर्णय पर पश्चाताप नहीं होगा यह मैं तुम्हें आश्वासन दे रहा हूं क्योंकि पूनम को भी मेरे प्यार पर भरोसा था वह भी मुझे उतना ही पसंद करती थी परंतु अपनी बेटी को लेकर के वह बहुत परेशान रहती थी मुझ पर विश्वास करके वह मेरे साथ जीवन में आगे बढ़ने का निर्णय ले चुकी थी ?


तारीख 26

 आज मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों के विरोध के बावजूद भी पूनम से शादी करने का निर्णय लिया है और आज मैंने कोर्ट मैरिज कर लिया अब हम और पूनम एक नए घर में शिफ्ट हो रहे हैं पूनम के इस निर्णय में उसके भाई भाभी साथ में थे परंतु मेरी माँ बाप शादी के विरोध में है


 न जाने क्या मुझे हो रहा है ?मैं बहुत दुखी हूं कि मेरी माँ मेरे इस निर्णय से खुश नहीं है ।मुझे माफ करना  माँ मैं तुम्हारी कमी महसूस कर रहा हूं ।शायद मैं गलत हूं परंतु मेरी इस गलती के लिए मुझे माफ कर देना 



तारीख 27 

मैं पूनम और मेरी नन्ही परी नए घर में गृह प्रवेश करते हैं आज मैं बहुत खुश हूं मेरी गुड़िया मुझे देख कर मुस्कुरा रही है ।मैंने उसे गोद में उठाया वह खुश होकर मेरे गले लग गई ।
आज मैंने महसूस किया कि एक पिता अपनी बेटी से ज्यादा प्यार क्यों करता है ?

।मैंने देखा कि साल दर साल बीत गए परंतु उनकी डायरी के हर पेज पर मेरी ही एक्टिविटीज के बारे में लिखा जाने लगा।

 पहले के पन्नों पर वह माँ की खूबसूरती और माँ के बारे में ही वर्णन करते हैं परंतु शादी के बाद जैसे उनकी दुनिया ही बदल गई है वह हर पेज पर मेरे हर दिन की गतिविधियों को लिखते हैं जैसे कि आज गुड़िया चलने लगी !आज गुड़िया का स्कूल का पहला दिन था !
उन्होंने लिखा है कि !
जब मैं उसे स्कूल छोड़कर वापस आ रहा था तो वह मुझे मुड़ मुड़ कर देख रही थी और मेरे लिए रो रही थी ।
मेरा मन बहुत दुखी हो गया मैं सोच रहा था कि अपनी गुड़िया को वापस घर लेते जाऊं। लेकिन नहीं !उसके भविष्य के लिए उसे पढ़ाना जरूरी है ।आज मेरी गुड़िया 6 में चली गई वह प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई है मुझे बहुत खुशी हो रही है।
 क्योंकि मैं उसे पढ़ाता हूं वह बहुत ध्यान से पढ़ती है 
गुड़िया मेरा नाम रोशन करेगी !इस तरह उन्होंने अपनी डायरी पर मेरे हर क्लास के बारे में वर्णन किया है मेरी दसवीं के रिजल्ट पर तो वह बहुत ही उत्साहित है ,!मेरे प्रथम श्रेणी !से पास होने पर वह बहुत खुश हैं । वह लिखते हैं कि
आज मेरे घर में पूनम के भाई भाभी आए हुए हैं गुड़िया को बधाई देने पूनम की भाभी जाते-जाते मेरी पत्नी के कान में कुछ कह गई जो मैंने सुना !वह जाते-जाते कह रहे थे दीदी गुड़िया अब बड़ी हो गई है थोड़ा जीजाजी से इसे दूर ही रखा करिए !

कितना भी हो आप तो उन्हें बहुत प्यार करती हैं परंतु है तो वह सौतेले पिता ?

मैं यह सुनकर बहुत ही विचलित हो गया हूं ,न जाने क्यों मन आज बहुत अशांत हो गया है ,


दूसरे पृष्ठ पर उन्होंने लिखा है आज बहुत दिन के बाद मेरे मम्मी पापा मुझसे मिलने हैं मैं उन्हें देखकर बहुत खुश हूं।
 वह पूनम और गुड़िया को भी मान सम्मान प्यार कर रहे थे ।बहुत सा गिफ्ट लेकर आए थे। मुझे अच्छा लगा मेरी माँ मुझे देख कर रोने लगी ।जाते समय उसने कहा कि तुम्हें अपनी और पूनम की प्यार की एक निशानी तुम्हारी खुद की भी होनी चाहिए थी ।
चलो इस शादी का तुमने निर्णय लिया था। तुम्हें जो अच्छा लगे वह करो परंतु अगर तुम्हारी अपनी संतान होती तो ,,,,,,कुछ और भी अच्छा होता,,,, तो मैंने अपनी माँ से कहा "माँ यह गुड़िया ही मेरी संतान है ।इसे ही तुम अपनी पोती समझो ।मेरी माँ चली गई ।
मेरे मन में कई सवाल घूमते रहे न जाने क्यों आजकल मन बहुत विचलित हो जाता है फिर मैं वापस अपनी प्यारी सी गुड़िया और अपनी पत्नी के पास लौट आता हूं ।
मुझे यह महसूस होता है कि है गुड़िया और मेरी पत्नी तुम दोनों सिर्फ मेरे हो ?
लोगों के कहने से क्या होता है? इसे मैंने पिता से बढ़कर प्यार दिया है दिल से चाहा है यह मुझे ही अपना पिता समझती है इसे क्या ?पता उसका पिता कौन है ?मैं हूं !मैं हमेशा रहूंगा !

तारीख 30
पता नहीं लोगों की बात सुनने के बाद 1 दिन पूनम ने ऐसे ही शाम के समय चाय पीते समय मुझसे कहा कि मैंने कितनी बार तुमसे कहा कि हमारे तुम्हारे प्यार की एक निशानी होनी चाहिए ।परंतु तुम कभी राजी नहीं हुऐ तुमने गुड़िया को अपनी बेटी मान लिया। मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगता है ।मैं तो बहुत खुश हूं मैं इतनी भाग्यशाली हूं ।कि मुझे तुम जैसा जीवनसाथी मिला। परंतु अगर तुम मेरी बात मान लेते,,,,,, मैंने उसे बीच में ही टोक दिया "दो बारा फिर कभी मत कहना "मेरी तो एक औलाद है ना बहुत से लोगों की एक बेटी है एक बेटा होता है "मेरी एक बेटी है 'तुम यह क्यों सोचती हो ?क्या गुड़िया मेरी बेटी नहीं है ?
वही मेरी बेटी है ।आइंदा कभी इस तरह की बात मुझसे मत कहना !

पिता ने अपने  पर इन सभी बातों को लिखा है 

एक पेज पर मेरे पिता लिखते हैं।
 पूनम पर भी समाज की बातों का असर  हो रहा है ।
कभी-कभी मैं यह महसूस करता हूं ।

फिर लिखते हैं कोई बात नहीं!
 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,
 और समाज की बातों का उन पर तो अवश्य ही असर होगा ।
परंतु मैं तो एक बेटी का पिता हूं
 मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ता।

लिखते हैं कि 
क्या एक पुरुष प्रेमी हो सकता है? पति हो सकता है ?
तो क्या एक पिता की भूमिका में नहीं रह सकता है ?
समाज में यह अवधारणा क्यों है?
 कि मैं एक सौतेला पिता ही !हूं !
मैं उसका पिता क्यों नहीं हूं? 
यह लोग क्यों नहीं स्वीकार करते हैं? मुझे समाज की इस अवधारणा को तोड़ना है मैं एक पिता हूं!


जब पूनम को मेरी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया !तो मेरी बेटी को और मुझे एक पिता के रूप में क्यों नहीं स्वीकार करता है  ?

3:00 2 तारीख 2 जून


मेरी शादी के दिन भी वह डायरी में लिखते हैं आज मेरी गुड़िया की शादी है मैं बहुत खुश हूं उसे एक कोई खूबसूरत राजकुमार ले जाएगा! गुड़िया तुम हमेशा खुश रहो !जहां भी रहो जीवन में आगे बढ़ो !
दूसरे दिन  लिखते हैं कि आज मेरी गुड़िया की विदाई है !
मैं उसे विदा होते नहीं देख सकता!
 एक पिता के लिए यह बहुत ही भावुक पल होता है! जब वह अपनी बेटी को अपने घर से विदा करता है !


उन्होंने लिखा है


 कि मैंने अपनी बेटी को बहुत ही नाजो से पाला पोसा है राघव तुम मेरी बेटी का बहुत ख्याल रखना,, उसे उतना ही मान सम्मान इज्जत,, देना जितना उसे मैं करता हूं ।
राघव तुम बहुत समझदार हो। बहुत ही अच्छे लड़के हो। संस्कारवान हो ।
इसीलिए तो मैंने तुम्हें अपनी बेटी के पति के रूप में चुना है ।


दूसरे पृष्ठ पर लिखते हैं कि 


गुड़िया के जाने के बाद पूनम बहुत उदास रहती है ।उसे क्या पता मैं उससे भी ज्यादा दुखी रहता हूं। परंतु अभी हम दोनों ही एक दूसरे के सहारा है ।पूनम मेरा बहुत ख्याल रखती है। ऐसा लगता है कि वह मुझे अपनी बेटी के पिता के रूप में स्वीकार कर चुकी है ।


मुझे बहुत ही अंदर से संतुष्टि प्रदान करता है ।और मैं अपने इस निर्णय से बहुत ही ज्यादा खुश हूं और संतुष्ट हूं।


 कि जो मैंने चाहा वह पा लिया कुछ दिन वह अपनी डायरी पर कुछ भी नहीं लिखते हैं एक जगह लिखते हैं गुड़िया आज तुम्हारी मम्मी और मैं तुम्हें बहुत याद कर रहे थे 
परंतु तुम्हें फोन करके डिस्टर्ब नहीं करना चाहते थे 
तुम अपनी दुनिया में खुश रहो! आज न जाने क्यों तबीयत ठीक

 नहीं लग रही है !
कुछ अंदर से अच्छा नहीं लग रहा है परंतु जब भी मैं अपनी बीमारी के बारे में कुछ भी बोलता हूं ।
पूनम बहुत परेशान हो जाती है यह देख कर मुझे अच्छा नहीं
 लगता है मैं आज डॉक्टर को दिखाऊंगा......... मैं अगले पन्ने पर पहुंचती उससे पहले ही मेरी छोटी सी बच्ची रोने लगी बच्चे की रोने की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई तभी माँ की फोन की घंटी, बजने लगी पूछ रही थी "गुड़िया तुम कहां हो" जल्दी आओ "पापा तुम्हें याद कर रहे हैं "
मेरा तो मन न जाने क्यों बहुत विचलित हो गया था। दिल की धड़कन बहुत तेज धड़क रही थी। मैंने अपने आप को संभाला !
और माँ से बोला कि हां  माँ मैं जल्दी पहुंचती हूं ?
बस पापा का कुछ कपड़ा लेकर आ रही हूं !
मैंने एक ऑटो पकड़ा पापा का सामान लिया बच्ची को गोद में लिया हॉस्पिटल पहुंची !न जाने क्यों मन में तरह-तरह के सवाल घूम रहे थे वहां जाकर मैंने देखा पापा को ऑक्सीजन लगा हुआ है! माँ बगल में बैठी हुई है ।
मुझे देख कर दौड़ कर मेरे पास आई बोली "पापा तुम्हें बहुत याद कर रहे हैं "
गुड़िया मैं तो तुम्हें बताना नहीं चाहती थी !क्योंकि वह बार-बार मना कर रहे थे!
 कि गुड़िया परेशान हो जाएगी उसे परेशान मत करना ।
अब ऐसी हालत में मैं तुम्हें कैसे ना बताऊं !
 माँ ,पापा के पास जाकर बोली देखिए !आपकी गुड़िया आई है",,,, आपसे मिलने ,,,,पहले तो पापा बिल्कुल भी शांत रहे ,,,फिर मैं पापा के पास जा कर के  आवाज लगाई !पापा !पापा !
आप कैसे हैं ?
देखिए आपकी गुड़िया आई है!,,,,, इतना सुनते ही पापा के हाथ में हलचल होने लगी ,,,और वह अपना आंख धीरे-धीरे खोलने लगे ,,,उन्होंने मुझे देखा देख कर वह बहुत खुश हुए ,,,मैं अपने पापा के गले लग गई ,,,और न जाने क्यों मुझे बहुत जोर  जोर से रोना आने लगा ,,,सभी नर्स आकर कर मुझे पापा से अलग की ,,,और हॉस्पिटल के कमरे से बाहर जाने के लिए कहा ,,,उन्होंने,,, कहा कि पेशेंट को डिस्टर्ब ना करें ,,,मैं बाहर चली गई गली की बेंच पर बैठकर मैं रोती रही ,,न जाने कितनी देर तक रोते   ---रोते मेरी आंख लग गई!

 मेरे आने के बाद पता नहीं पापा धीरे-धीरे ठीक होने लगे !
कुछ समय पश्चात पापा को डिस्चार्ज कर दिया गया !
और वह घर पर आ गए मैं रोज अपने पापा के लिए तरह-तरह के नाश्ता बनाती और पूछती "पापा कैसा बना है "बताइए ना राघव थोड़ा तीखा खाते हैं !परंतु आप तीखा खाते नहीं है !ना इसलिय मै मैं बिल्कुल सादा बनाती हूं पापा  आपके लिए !

मैं अपने पिता की पूरी तरह देखभाल करती रही ।
मुझे देख कर धीरे-धीरे स्वस्थ हो गए। पता नहीं एक महीना कैसे बीता मुझे पता ही नहीं चला,
 मम्मी पापा के साथ रहते रहते
! राघव मुझे लेने आने वाले थे ।
मेरा जाने का टिकट करा दिया था
 जब मैंने पापा को बताया तो वह थोड़ा दुखी हो  ।
गए ममाँ भी दुखी हो गई परंतु जाना तो था ही ।


मुझे मैंने पापा की डायरी में सब कुछ पढ़ लिया ।यह मैंने पापा को कभी भी आभास नहीं होने दिया।
 आखिर मैं भी तो अपने पिता की बेटी हूं ।
पापा ने मुझे जो संस्कार दिए जो कुछ सिखाया मैं यह सब तो इन्हीं से सीखी हूं ।
जब मेरा जाने का समय हुआ तब मैंने अपनी छोटी सी बच्ची को पापा को गोद में दिया !
और बोला पापा ,,,,यह आपकी गुड़िया !की गुड़िया है !
 इसे भी आप उतना ही प्यार दीजिए ----जितना आप अपनी इस गुड़िया को देते थे :::यह आपकी है इसे कोई आपसे नहीं छीन सकता,,, इसे कोई भी आपसे दूर नहीं कर सकता ,,,,आप इसके अपने हैं,,,, जितना आप इसको प्यार देंगे,,, उतना कोई नहीं देगा  पापा !!!अपनी गुड़िया के गुड़िया को उतना ही प्यार देंगे ना !,,,मेरी बातों को सुनकर न जाने क्यों?
 पापा मेरी गुड़िया को गले से लगा कर रोने लगै,,,,, मेरे आंखों से आंसुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी ,,,,,,
 माँ वही सामने खड़ी होकर वह भी खूब रोने लगी ,,,,पता नहीं इतने आंसू क्यों बह रहे थे ,,,
शायद इन आंसुओं के साथ कुछ मेरा दर्द कम हो जाए!!!! कुछ पापा का कम हो जाए !!,,,,कुछ माँ  का भी दर्द  कम हो जाए...........,,,,,,,,


लेखिका पूनम मिश्रा

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

लड़का: शुक्र है भगवान का इस दिन का तो मे कब से इंतजार कर रहा था। लड़की : तो अब मे जाऊ? लड़का : नही बिल्कुल नही। लड़की : क्या तुम मुझस read more >>
Join Us: