Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक 74889 0 Hindi :: हिंदी
जीने के तौर-तरीके मिलने से, अज़िय्यत नही मिला करते हैं। दो चेहरे एक से मिलने से, नियत नही मिला करते हैं। सिलसिला-ए-ज़माने में मशहूर हुआ, गुमान था बहुत, अब दूर हुआ। तमन्ना मंज़िल तक जाने की है। सफ़र में फ़ज़ीलत नही गिना करते हैं। मोहब्बत करके जीते हैं, दुआ करते हैं, न की गिला करते हैं। ये पैगाम उस ख़ुदा का है, सुना है कुछ ऐसे ही मिला करते हैं। रुख़्सत तम्माम लम्हे हों, कुछ शायराने अंदाज़ में, तो कुछ खास नगमे हों। पलकों पर रख सज़दों को बिछाया गया। मसला जो था उसको आज़माया गया। तसव्वुर को हक़ीक़त फ़रमाया गया। इस दौर में युहीं कैफियत पूछने को जीना कहते हैं। अफ़साने को हक़ीक़त में जीया करते हैं। मुराद बिन मांगे पूरी हो तो, इबादत को ही इनायत समझ लिया करते हैं।