धर्मपाल सावनेर 05 Apr 2023 ग़ज़ल समाजिक #ख्वाब# जिंदगी#बोहोत #शानदार #गजल# 8386 0 Hindi :: हिंदी
ख्वाब कुछ इस तरह सजा रहा हु में घोर आंधि में दीपक जला रहा हु में ।। लाख मसक्कत्तो पर भी ढह जा रहा बारिश में मिट्टी का घर बना रहा हु में ।। बहती नदि में एक लकड़ी का टुकड़ा जिधर ले जाए उधर जा रहा हु में ।। में सबको भुला हु ये देखने के लिए देखता हु किसे किसे याद रहा हु में ।। तुमसे दूर होके क्या बीत रही मुंझपे ये तो में खुद मेरी जान पा रहा हु में ।। धरम सिंग राजपूत 8109708044