Prashant Kumar 09 Apr 2023 ग़ज़ल समाजिक 6788 0 Hindi :: हिंदी
कुछ इस तरह से अबकी सताया गया मुझे हँसने लगा तो फिर से रुलाया गया मुझे। हर शख्स जिंदा देखके हैरान था यहां कल फिर से खलबतों में बुलाया गया मुझे। होती थी दास्तान कभी नाम से मिरे सबकी जुबां से आज मिटाया गया मुझे। संसार में न अपना था ना गैर था कोई तो बोल किसके हाथ जलाया गया मुझे। जो शख्स थूकता था मिरे थोपड़े पे सुन कल उसके रूबरू ही बिठाया गया मुझे। पहले कहा सभी ने कि तुम बैठ जाइए जो बैठने चला तो भगाया गया मुझे। मेरी चमक धमक तो मरासिम तुझी से है रौनक तिरे ही घर की बताया गया मुझे। प्रशांत कुमार