मारूफ आलम 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक #parinda shayri#maroof#gajal 46827 0 Hindi :: हिंदी
उसकी भी जिंदगी थी पहचान थी ऐ दोस्त उसका भी अपना जहाँ था शान थी ऐ दोस्त जिसको खाया है तुमने बढ़े चाव से तलकर उस नन्हे मुन्ने परिंदे मे भी जान थी ऐ दोस्त निशाना हम लगाते ये कैसे मुमकिन था बता तुम्ही पे तीर थे तुम्ही पे कमान थी ऐ दोस्त जो कातिल था वो ही मालिक था सराय का उस पर ही हम लोगों की अमान थी ऐ दोस्त मकान बनाने वालों को क्यों मुजरिम ठहराऐं जगह ही तिरछी थी उसमें कान थी ऐ दोस्त कहाँ बसाता बेघर मायूस परिंदो को"आलम" एक इमारत थी ओर वो भी दान थी ऐ दोस्त मारूफ आलम