akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक हमारी संस्कृति में नदियों को मां माना जाता है हमें अपने देश की गंगा यमुना नर्मदा गोदावरी इत्यादि नदियों की स्वच्छता के लिए प्रयास करना चाहिए 29909 0 Hindi :: हिंदी
ऐ मानव तुमसे विनती है मेरा मत संहार करो । इस मोक्षदायिनी मां पर बस ! इतना उपकार करो । मेरी कलकल -छलछल धारा तुमको संगीत सुनाती है । पीने को अमृत देती है खेतों को पानी देती है ।। माता सी ममता देती हूं जीवन अर्पण कर देती हूं । सर्वस्व लुटाकर अपना मैं तुमसे कुछ भी नहीं लेती हूं ।। मैं पाप तुम्हारे धोती हूं तुम मुझे जहर क्यों देते हो । तुम मुझको माता कहते हो माता सा प्यार नहीं देते ।। नाले नाली का गंदा पानी धारा में मेरी मिलाते हो । साबुन का मुझे जहर पिला तुम हाथ जोड़कर जाते हो ।। पालीथिन थर्मो आदि से मेरी धारा रुक जाती है । श्वेत स्वच्छ आंचल को मेरे तार-तार कर जाती है ।। अपने पापों को धोकर तुम बस! पुण्य कमाने आते हो । कूड़ा करकट पापों की गठरी इस मां को तुम दे जाते हो।। प्रतिदिन मिलते इन घावों से मैं जीर्णशीर्ण हो जाऊंगी । तेरे जीवन की बगिया से मैं लुप्त कहीं हो जाउंगी ।। जीवन रेखा इस मां की फिर नक्शों में देखी जाएगी । यदि मैंने मुंह जो फेर लिया ज़िन्दगी दूभर हो जाएगी।। अम्रत जल की धारा के बिन जीवन कैसे जी पाओगे । तुम याद करोगे फिर मुझको मन ही मन में पछताओगे ।। ऐ मानव अब कुछ शर्म करो मत मुझ पर इतना जुल्म करो । नहीं करोगे मां को गंदा तुम आत्मा से स्वीकार करो।। ऐ मानव तुमसे विनती है...........
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