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सावन

हुकम चन्द जैन 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत शृंगार रस 56222 0 Hindi :: हिंदी

किसलय सा तन है मेरा सखी 
आज यह कुंभ लाने क्यों लगा 
सावन की रिमझिम बरखा में 
है अंग अंग बल खाने लगा 
इसको मां की ममता समझूं
या समाज ने रचा नियम 
मिलन ऋतु में पिया मिलन पर 
लगा हुआ है यह बंधन 
यह भूल हुई मुझसे ही तो 
सूना आंगन कर आई हूं 
यादें तो मिलन की काफी है 
रातें मैं विरह की लाई हूं 
अब तो खुद पछताती हूं 
साजन को छोड़ कर आई क्यों 
ऋतुएं तो और भी बाकी थी 
पतझड़ ही साथ में लाई क्यों 
सखी भान नहीं मुझको अपना 
मैं बिरहीन सी लगती हूं
 भावों में खोकर उन पल के
 उनको पास समझती हूं 
हर पल प्रतीत होता ऐसे 
जैसे वह मेरे पास खड़े 
केशों के हिल जाने से 
लगता है उनके हाथ बढ़े
जब लटें झूमती गालों पर 
और करने लगती अठखेली 
अधर थिरकने लग जाते 
मैं बन जाती हूं अलबेली 
बालों का गालों पर हिलना
 उनके श्वासों लगता है 
अधरों को अपने पास जान 
हल्का चुंबन सा लगता है 
तब मैं भाव विभोर हुई 
सिरहन शरीर में दौड़ गई 
यह सोच के कोई देख न ले 
मैं हटकर के हो गई खड़ी 
भावों में उनके खो करके 
मैं अपने आप लजाती हूं 
अनुभूति उनकी पा करके 
मैं शर्मा शर्मा जाती हूं 
सखी स्वप्न मेरा यह भंग हुआ 
तो मन मेरा कुम्हलाने लगा 
सावन की रिमझिम बरखा में 
अंग अंग बल खाने लगा 
जब स्वप्न जान कर रोती हूं 
तो तड़पन और भी बढ़ती है 
कुछ थक कर जब मैं सोती हूं 
तो धड़कन और भी बढ़ती है 
अपना मन संयत करने 
स्नानागार में जाती हूं 
पानी की रिमझिम बूंदों से 
मन हल्का कर पाती हूं 
अब कैसे बीते दिन रतिया 
बिन प्रियतम अभिसार सखी 
दर्पण नहीं सुहाए मुझको 
ना कर पाऊं सिंगार सखी 
उठ कर वातायन खोलती हूं 
पथ पर निहारती हूं उनको
 मगर निगोड़ी हवा मचल कर 
बहका जाती है मुझको 
फिसला कांधे का आंचल 
है समीप यह भास हुआ 
सिरहन के मारे थिरक गई 
छुअन का एहसास हुआ
 परिजन की नजर बचाकर 
बैठी आंगन द्वार निहारूं 
शायद पाती पिया की आए 
ले उमंग मन से हारू 
बहुत दिनों से डाल पर कागा 
नहीं सखी क्यों आया री
आने का संकेत पिया का 
नहीं अभी तक लाया भी 
अब तो यह विश्वास हुआ 
पिया नहीं है पास मेरे
यह सोच के अब तो और अधिक 
मन मेरा मुरझाने लगा 
सावन की रिमझिम बरखा में
 है अंग अंग बल खाने लगा 
सोचूं सखी अपने मन ही
 क्यों रहना दूर जरूरी है
 बिन पिया जिंदगी मेरी 
कितनी आज अधूरी है 
सखी पिया आलिंगन का मुझको 
गर बंधन मिल जाता 
सावन का हर पल मुझको ऐसे ना तड़पाता |

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