Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक दो बात 41961 0 Hindi :: हिंदी
जवानी बेदाग़ गुज़र जाए, उसे ही गुज़रना कहते हैं। उम्र के अनुसार सुधर जाए, उसे ही सुधारना कहते हैं। घर पर अपनों के बीच मरे, उसे ही मरना कहते हैं। बिन बिगड़े बुढ़ापा सरे, उसे ही सरना कहते हैं।