Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग भिगोने लगा हैं 16651 0 Hindi :: हिंदी
तू अब साँस बनके सांसो में घुलने लगा है तू बातों ही बांतों में हर बात पे रूठने लगा हैं आँखों से आँख आँख क्यों चुराने लगा हैं तू काहे कामनी मृगनैनी मन मोहनी नैनो के प्यास बढ़ाने लगा हैं तू अब साँस बनके सांसो में घुलने लगा है तेरा जिस्म इश्क़ जवानी अंगड़ाई लेती निगोड़ी यौवन सावन के फुहार बन मेरे तन मन को भिगोने लगा हैं तू अब साँस बनके सांसो में घुलने लगा है