संदीप कुमार सिंह 22 Jun 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7842 0 Hindi :: हिंदी
आकांक्षाओं के सागर में मन तैरते हैं, एक नहीं हजारों तृष्णा में हम जीते हैं, मेरे हिसाब से तृष्णा पालना भी चाहिए_ पूर्ण करने हेतु हर कोशिश करना ही हैं। मन भी बहुत ही चुस्त_फुर्त रहता है, खूनों में एक नव रवानगी भी रहता है, तृष्णा की एक जोत भी साथ में रहते:_ फिर यह सफर मज़ेदार ही रहता है। अगर कुछ नया कर गुजरना है, आकांक्षाओं को तब बढ़ाना है, ओढ़ मेहनत की चादर को अब:_ सफ़लता का इतिहास लिखना है। सार्थक जीवन को करना है, नाम अमर कर ही जाना है, क्यों ना कल्याणकारी ही बनें:_ लोगों के दिलों में अब रहना है। जीवन चक्र को समझना है, खेल को खेल ही समझना है, प्रेम की बीज ही बोते चलें:_ तब ही तृष्णा पूर्ण होता है। तब आत्मिक सकूं मिलता है, मनुज जन्म सार्थक लगता है, कुछ विरासत बना छोड़ जाना:_ तब दुआएं भी खूब मिलता है। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....