नरेंद्र भाकुनी 20 Feb 2024 कविताएँ समाजिक 9403 1 5 Hindi :: हिंदी
हवा से पूछा जाकर के मैंने, कहां से आए, क्या कर रहे हो? उसी हवा ने बताया मुझको - सुगंध पुष्पों से ला रहे हैं बिखरती जाए पुष्पों की चादर हम आ रहे हैं, हम आ रहे हैं। जाकर घटाओं से मैंने पूछा - चमक रही है क्यों दामिनी सी? उन्हीं घटाओं ने राग छेड़ा, रिमझिम से सावन बरस रहे हैं। शुष्की हुई थी धरती तो कब से “तरस रही थी, तरस रही थी। हमारी धरती हमें यह कहती हम हैं धरोहर ,तुम हो सरोवर। उन्हीं सरोवर में जाकर देखो सुंदर से पत्तों से मिल रहे हैं। जोड़ा कमल को कलियों ने सारा “हम खिल रहे हैं हम खिल रहे हैं”। गंगा से पूछा, जमुना ने पूछा समस्त सारी नदियों ने पूछा - जाएं कहाँ हम? क्या हम बनाए? बताया गंगा ने सबको आकर ये नाद करती सी जा रहीं हैं। बनाकर अपना महान सागर वचन हीं अपना निभा रहीं हैं। - नरेंद्र सिंह भाकुनी
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