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कहां रही चूंक उनकी

कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 60954 0 Hindi :: हिंदी

मुनासिब नहीं मेरा किसी पर भी बरस जाना,।
मैं उस पगडंडी पर ,बिना धाप किए चल रही हूं,
जहां एक कांटा कुरेदता है , मेरी कदमों के तलवे को,मगर 
कोई सुन नहीं सकता मेरी कराह , 
मैं अपने भीतर जुझने का द्वंद लिए फिरती हूं,
यह मेरी वह दो आंखें हैं,
जिनसे छिन लिया, गया था, कभी दिन का उजाला,
आज, मैं ,इन आंखों में समंदर सा भार लिए फिरती हूं,
मुनासिब नहीं मेरा बरसना किसी पर भी,
मालूम करो दीवारों से , कहां रही चूंक उनकी ,
बनकर रह गये जो मात्र रेत की ढाल,
मैं मौन होकर भी ,सारा हाल लिया फिरती हूं,।।
कविता पेटशाली





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