Jyoti yadav 18 Sep 2023 ग़ज़ल समाजिक जिंदगी की पुरी किताब लिखूंगी 3614 0 Hindi :: हिंदी
इस ग़ज़ल में मैं खुद को लापरवाह लिखूंगी थोड़ी डरी सहमी फिर भी बेगुनाह लिखूंगी💐💐💐💐💐💐💐 चल रही है चारों तरफ खुशियों की आंधी इस आंधी में अपने लिए तुफान लिखूंगी आसान तो नहीं होगा फिर भी कुछ होठों की मुस्कान लिखूंगी 😆😆😆😆😆😆💓💓💓😆😆😆😆 इस नज़र की निगाह लिखूंगी अपने ख्वाबों की चाह लिखूंगी छोटी बड़ी हर मुश्किलों का हिसाब लिखूंगी एक दो पन्ने नहीं जिन्दगी की पुरी किताब लिखूंगी ♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️ आंखों में आसूं लिए आई थी इस अनजानी सी दुनिया में यहां सब थे अनजाने देख हमें मुस्कुराई मां ने पापा ने भी प्यार से हमें थामे 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 पर अब तक थामें थामने का निशान लिखूंगी निकलती हुई रुह की आह लिखूंगी इस ग़ज़ल में मैं खुद को लापरवाह लिखूंगी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️✍️ ज्योति यादव के कलम ✒️✒️✒️✒️✒️ कोटिसा विक्रमपुर सैदपुर गाजीपुर 🙏🙏