Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य उसी के लिए 63599 0 Hindi :: हिंदी
शहर शहर हूँ मैं घूमता दिल तरहथि पे लिए कोई खरीद सकता हैं तो खरीद ले नहीं तो मेरे महबूब से मिला दे ये बिकाऊ नहीं हैं पर क्या बताऊ यारों दिल फेक बहुत हैं मनचला है आवारा हैं निठल्ला हैं लेकिन जैसा भी हैं दिल ही तो हैं उसी के बातें करता हैं करवटों में सवरता हैं सपने चुनता हैं रस्मे बुनता हैं उसी की लिए बस उसी के लिए जख्मे सहता हैं