Bholenath sharma 17 Mar 2024 कविताएँ समाजिक अवध नगरी में होली , खेले रघुरइया 5379 0 Hindi :: हिंदी
अवध नगरी में होली ,खेले रघुरइया खेले होली , हो खेले होली ,चारों भइया अवध नगरी में होली , खेले रघुरइया प्रीति के रंग सें , रंग दो तन मन रंग जाये मन ,एक बार सखिया , छूटे न सखी , ये अनुराग के रंग जिंदगी रंग जाय , यही रंग सखिया । अवध नगरी में होली , खेले रघुरइया मारो मारो पिचकरी , उड़ाओ गुलाल रसिया , आज रगों सारी गोरी , के गाल रसिया , झूमत है ,नाचत है , गावत है , आज मगन हैं संसार सखिया रंग दों , प्रीति के रंग संसार सखिया ।