Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक साँची धूप काव्य, वक़्त का पहिया, 15723 0 Hindi :: हिंदी
वक़्त का पहिया कारवाँ गुजर जाते हैं खंडहर शेष रह जाते हैं बेपनाह दर्द लिये अपनी जुबानी अपनी कहानी कह जाते हैं नितांत अकेलापन भी तो हमसे सहा नहीं जाता व्याख्यान अपने अस्तित्व का किये बिना रहा नहीं जाता बदली ऋतुओं ने भी ली फिर अंगड़ाई गुजरी बहारें भी तो फिर लौट आईं कलियों संग फूल फिर मुस्कुराये कुदरत के नज़ारे पुनः लौट आये अपना समां न फिर लौट आया मुरझाया फूल न फिर खिल पाया जर्जर अवस्था में अकेला खड़ा हूँ बिन चेतना तन्हा सुप्त पड़ा हूँ वो भी समां था मुठ्ठी में जहाँ था जमाना जब हक में था वक़्त मेरे वश में था चिड़िया चहचहाती थी यशोगान मेरा गाती थी सूर्य की चमक में डूबी सुनहरी आशामयी प्रभात थी वक़्त का चला कारवाँ आ गयी अमावस की सी रात भी अब बेजान क्षीण नींव पे सोया हूँ बीते लम्हों की याद में खोया हूँ वक़्त एक दिन ऐसा भी आयेगा अस्तित्व खंडहर का माटी हो जायेगा
Hindi Lecturer in Government school GSSS Karoa Himachal Pradesh....