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एक प्रेम कवि की जिव्हा पर

आकाश अगम 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #हिंदीकविता #एकप्रेमकविकीजिव्हापर #जो उखाड़ तुम सको उखाड़ो #Akashagam #आकाश अगम 20324 0 Hindi :: हिंदी

इस विशाल अम्बर पर कैसा गहन तिमिर छाया है
भारतवर्ष सरोज , सिंह क्यों इतना कुम्हलाया है
नए सिला  लो वस्त्र पुराने आज  खोलने आया
सुनो अगर दम है कानों में सत्य बोलने आया।।

सत्य यही है कार्य नहीं तुम मात्र जानते भाषण
नवल कुसुम नव दीप नवल स्वर नवल सूर्य का भक्षण
 राहु खड़े ऋषिकेश रूप में , बिना कृष्ण के पार्थ
कैसे  कर पाएगा  रवि  अपना जीवन चरितार्थ।।

अपनी पीर भुला भी दूँ जन पीर न सह पाऊँगा
जो उखाड़ तुम सको उखाड़ो मौन न रह पाऊँगा
तुम्हीं कहो अपनी वाणी को खुद कितना जीते हो
हमें  छलकना  सिखलाते  खुद  रीते के  रीते  हो।

विदित न होते स्वयं तुम्हें उत्तर हम पर चढ़ते हो
छोटी  छोटी  बातों पर भी वाक  युद्ध  करते  हो
मातृ-पितृ  निज तनय भेज दें सीख सकें परित्राण
निज सुख हेतु शरीर छोड़ कर हर लेते हो प्राण।।

एक प्रेम कवि की जिव्हा पर व्यंग्य डोलने आया
सुनो अगर दम है कानों में सत्य बोलने आया।।

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