DIGVIJAY NATH DUBEY 20 May 2023 कविताएँ समाजिक #दिग्दर्शन 8054 0 Hindi :: हिंदी
बहुत हुई पश्चिम की बोली पाश्चात्य सभ्यता भाग रही है फिर से प्रेम का भाव जगाने हिंदी भाषा जाग रही है इंतजार की बेला थी आएगी इक दिन शाम वही वेद पुराण वेदांग स्मृति आएगा सद्भाव वही वो सदियों की अकुलाहट अब कहीं किनारे झांक रही है फिर से प्रेम का भाव जगाने हिंदी भाषा जाग रही है वही प्रेम है वही सरसता वही मधुर देवों की बोली वही ज्ञान संगीति अलौकिक वही शास्त्र दर्शन विलौकिक भूले धुन की स्मृति कराने चहों दिशाएं भांख रही हैं फिर से प्रेम का भाव जगाने हिंदी भाषा जाग रही है ।। जाग रहा है युवा जगत फिर से संज्ञान जगाने को जाग रही है हृदय की मंशा भाव विमुख दर्शाने को आना था ये वक्त किसी दिन वर्षों से पुकार यही है फिर से प्रेम का भाव जगाने हिंदी भाषा जाग रही है ।। (दिग्दर्शन )