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जीवन की सच्ची कहानी

Uma mittal 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक जीवन की सच्ची कहानी,नसीहत का असर 29587 0 Hindi :: हिंदी

मैं अभी पुल पार कर ही रही थी कि सचखंड ट्रेन स्टेशन पर आ गयी ,मैं और तेज तेज भागने लगी ,मेरी साँस बुरी तरह फूलने लगी | मेरे भाई ने टोका “जल्दी जल्दी दौड़ ,नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी “|मैं हाँफते हांफते ट्रेन में चढ़ी ही थी कि ट्रेन चल पड़ी | मेरी साँस इतनी तेज तेज चल रही थी कि सामने वाली सीट पर बैठे व्यक्ति ने मुझे टोका “बेटा ऐसे भाग कर ट्रेन पकड़ने में खतरा होता है ,मैंने हाँ में सिर हिलाया और पानी निकाल कर पीने लगी | बातो ही बातो में पता चला कि वह व्यक्ति भी मेरे ही गांव से है | मेरे बताने पर कि बस स्टैंड के पास ही मेरे पिता जी की मील है ,वह मुझे पहचान गए और बोले कि “अच्छा तो तुम गर्ग साहब की बेटी हो ,मैं तुम्हारे पिता जी को जानता हूँ ” और उन्होंने ने मेरे पिता का नाम भी बताया | ट्रेन में इस प्रकार अपना परिचय देना मेरे भाई को अच्छा ना लगा , इसलिए मेरे भाई ने मुझे आंखे दिखा कर घुरा , मैं चुप हो गयी |
तभी मेरी नजर अंकल के साथ बैठी लड़की पर पड़ी जो एक आँख पर रुमाल रख कर चुप चाप बैठी थी , “अंकल इस की आँख को क्या हुआ “,मेरे मुँह से निकला | तभी अंकल ने कहा कि “यह मेरी बेटी है इसकी ही आंख दिखाने मैं आगरा जा रहा हूँ “|
“अंकल क्या हुआ है इसे ” मेरे पूछने पर अंकल ने बताया “बस क्या बताऊ? , दो महीने पहले इसका अठारवा जन्मदिन था, सभी आये थे ,खूब धूम धाम से जन्मदिन मनाया ,जाने किस कि नजर लग गयी |”
“क्या जन्मदिन पर गिर गयी “,मैंने पूंछा |
तभी लड़की की आँखों से टप टप आंसू बहने लगे , फिर थोड़ा आंसू पोछते हुए बोली ,”जन्मदिन के दूसरे दिन की बात है, मैं अपने घर के बाहर बच्चो का खेल देख रही थी ,बच्चे धनुष बाण चला रहे थे “|
“कौन सा धनुष “मैंने पूछा |
वह बोली ” जो बाजार में बिकता है ,दशहरे वाले दिन ,उस धनुष पर बच्चे झाड़ू वाली तीली रख कर चला रहे थे , तभी मेरे घर के पास वाला पड़ोसी रवि आया और बच्चो के हाथ से धनुष ले कर चलाने लगा ,तभी मुझे देख़ते ही बोला ‘ सोनिया बच !’
‘देखो मत चलाना’ कहते हुए ,मैंने अपने दोनों हाथो से अपना मुँह ढक लिया लेकिन मेरे दोनों हाथो से ढकने के बाद भी मेरी ऊँगली के बीच से तीली सीधी मेरी आँख पर लगी ,शायद ऊँगली के बीच में थोड़ी विथ (जगह ) रह गयी होगी | मैं चीख कर जमीन पर बैठ गई , फिर सभी बच्चे मेरे पास जमा हो गए | रवि भी मेरे पास दौड़कर आया और फिर मुझे सभी डॉक्टर के पास ले गए , मैं कुछ कहती इससे पहले ही सोनिया फूट-फूट कर रोने लगी ,उसे रोता देख उसके पापा ही नहीं मैं भी रो पड़ी| सभी यात्री भी उसे चुप कराने लगे |सभी ने कहा “इस बच्ची की आंख भगवान करे ठीक हो जाए”| अंकल ने एक कागज पर अपना पता लिख कर दिया और बोले “बेटा आना मेरे घर “|सोनिया जिसकी आंख में तकलीफ थी वह जाते जाते बोली ” दीदी आप जरूर आना “| उस समय सिर्फ मैं उससे एक साल बड़ी थी, पर उसका दीदी कहना मुझे काफी अच्छा लगा ,मैं भी उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली “तुम्हारा सब ठीक हो जाएगा ,तुम हौसले से काम लो”| फिर आगरा में वे उतर गए |मैं ग्वालियर चली गई लगभग हफ्ते बाद मैं लौटी तो मुझे सोनिया का क्या बना जानने की इच्छा हुई |मैं अपनी एक सहेली माधुरी के साथ उससे मिलने उसके घर गई |सोनिया घर पर ही थी| उसने खुश होते हुए मुझे बिठाया, उसकी मां भी काफी अच्छी थी |माधुरी मेरी सहेली ने पूछा “आंटी आपने उस लड़के को कुछ नहीं कहा ” |”क्या कहूं बेटा ,बस थोड़ी सी डांट लगा दी और क्या करें”|
मैंने पुछा की डाक्टर ने क्या कहा ?सोनिया ने कहा ” अब तो पत्थर की ही आंख लगेगी , आंख ठीक ना होगी “|उसके चेहरे पर उदासी थी ,इधर उधर की बातें करके हम जाने लगे तो सोनिया हमें बाहर तक छोड़ने आई |इतने में उसकी नजर सामने रवि पर पड़ी बोली “देखो दीदी ,वह वही लड़का है, नीली शर्ट वाला जो कार धो रहा है ,उसी ने मेरी आंखें फोड़ दी “| उसने भी हमें देख लिया तो वह अपने घर के अंदर चला गया |कई दिन बीत गए एक दिन मैं पोस्ट ऑफिस गई थी ,अपनी ही लिखी रचना पोस्ट करने |उन दिनों अपनी लेखनी पोस्ट करने का रिवाज था| मैं मनोरमा नाम की पुस्तक में अपनी लेखनी पोस्ट करने गई थी |एकाएक पिन कोड लिखते वक्त मेरा पैन रुक गया |सामने खड़े लड़के से पैन मांग कर पिन कोड लिखकर उसे पैन देने ही वाली थी कि लड़का मुझे जाना पहचाना लगा ,तभी मेरे मुंह से निकला “तुम रवि हो ना “|जी हां उसने उत्तर दिया |”रवि किसी का अंधेरा बन जाए, ऐसा सुना नहीं था, रवि तो रोशनी देने के लिए मशहूर है ,फिर तुमने कैसे किसी के आंखों में अंधेरा भर दिया ,उसका क्या कसूर था”| तभी उसे भी याद आ गया उसने भी मुझे सोनिया के दरवाजे पर देखा था |रवि सफाई देते हुए बोला
“जो भी हुआ, अनजाने में हो गया, मेरे घरवाले तो हरजाने के रूप में उसका इलाज का खर्च देने को तैयार थे ,पर वह लोग माने ही नहीं “|मुझे गुस्सा आ गया मैंने कहा” अगर तुम्हें तुम्हारी आंख के बदले पैसे दे दे तो कैसा लगेगा जरा सोचो , कभी तुमने सोचा उससे शादी कौन करेगा , उसकी आंखों में तुम ने हमेशा के लिए अँधेरा और आंसू भर दिए “|और क्या क्या कहा कुछ याद नहीं| रवि चुपचाप सुनता रहा ,तभी मुझे ध्यान आया कि उसका पैन मेरे हाथ में है ,शायद इसलिए वह खड़ा हो |मैं उसे पैन देकर थैंक्यू कह कर पोस्ट ऑफिस से बाहर आ गई |
लगभग 3 महीने बीत चुके थे ,मैं बालकनी में खड़ी थी कि रवि दिखाई दिया उसके हाथ में कुछ था |वह मुस्कुराया तो मैं कुछ समझ नहीं पाई दौड़ कर नीचे आयी तो देखा कि वह मेरी भाभी से बाते कर रहा था | पास आने पर पता चला उसकी शादी का कार्ड था |
“सोनिया के साथ यह कैसे?”
मेरे पूछने पर रवि हंस पड़ा “भगवान के बाद आपको यह दूसरा कार्ड देने आया हूं ,आप शादी पर जरूर आना, मम्मी पापा को मैंने साफ-साफ कह दिया अगर शादी करूंगा, तो सोनिया से ,नहीं तो अब शादी ही नहीं करूंगा “| “तुम्हारे घर वाले मान गए ?”
“मेरे मम्मी पापा को मेरे इस फैसले पर गर्व है , आपकी बातें मैं तीन-चार दिन तक सोचता रहा और मैंने फैसला ले लिया, भला ! रवि किसी के आगे अंधेरा कैसे कर सकता है “|मेरी कहीं हर बात को वह दोहरा रहा था ,थोड़ी देर बाद रवि चला गया | मैं तैयार होकर सोनिया को मिल आऊं सोचा मैं तैयार हो ही रही थी कि एक कार्ड सोनिया और उसकी मां खुद लेकर मेरे घर आ गई |सोनिया मुझे देखते ही गले लग कर बोली दीदी और रोने लगी लेकिन इस बार उसके आंसू खुशी के थे |
उमा मित्तल ,
राजपुरा ,पंजाब |




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