Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 23904 0 Hindi :: हिंदी
मैं हारा, थका, बड़ा हुआ, लड़खड़ाते कदमों के बल खड़ा हुआ, कई बार आईं अटकलें, खुद से मैं रूठा, दुनिया हंसेगी मुझपर इस बात से मन टूटा। ये गिरने के बाद उठने का अलग ही रुतबा है, चढ़ते हुए ज़िन्दगी में गिरने का तज़ुर्बा है। अपनो की दुआएं साथ हैं- संघर्ष की साँसें खिंचता जा रहा हूँ मैं, अनुभव अच्छे लोगों से अच्छा लिया है, लिखता जा रहा हूँ में।