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कामचोर का हौसला-काबिलियत को व्यर्थ ना करें

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक कामचोर, निकम्मा, नल्ला, हौसला, मेहनत, हिम्मत, साहस, बुद्धि, दिमाग, कोशिश, समझ, प्रिय, पसंदीदा 3720 0 Hindi :: हिंदी

कहानी के शीर्षक से यह मालूम होता है कि इसमें कामचोर और हौसला दो शब्द हैं.  पहला शब्द है कामचोर जिसका मतलब होता है काम ना करना चाहने वाला, काम से बचने वाला और काम से भागने वाला. यह तीनों मतलब होते हैं कामचोर के और यह गुण जिस में होते हैं उसे हम कामचोर कहते हैं.  दूसरा शब्द है हौसला जिसका मतलब होता है किसी काम को करने से हार ना मानना. जिसके अंदर हौसला होता है वह कोई भी काम करने से पीछे नहीं हटता. इन दो शब्दों के बारे में तो सभी भलीभांति परिचित होंगे.  मैं इन शब्दों के बारे में इसलिए बता रहा हूं क्योंकि हमारी जो यह कहानी है वह कामचोर के हौसले के ऊपर है.  तो आइए मैं कहानी पर आता हूं.
 कहानी का  जो मुख्य पात्र है उसका नाम है धीरज. धीरज एक निहायत ही कम कामचोर लड़का था  जोकि एक बहुत ही मेहनती किसान का बेटा था. पिता जितना ही मेहनती थे बेटा उतना ही बड़ा कामचोर था. उसकी कामचोरी की चर्चा तो गांव गांव में हुआ करती थी. उसे कामचोर इसलिए माना जाता था क्योंकि उसके माता पिता खेत में दिन रात मेहनत किया करते थे लेकिन उनके पास भटकता भी ना था और खेलने कूदने में लगा रहता था. नहीं अपने माता पिता की कोई बात मानता था और ना ही गांव के किसी बड़े बुजुर्ग की बात सुनता था. काम करने को कहते ही उसे जैसे बुखार चढ़ जाता था.  मौज मस्ती में उसका बहुत मन लगता था.  अपने माता पिता को मेहनत करते देख कर भी उसे जरा सी शर्म नहीं आती थी. ना जाने कैसे मेहनती परिवार में ऐसा कामचोर पैदा हो गया था.  जन्म से उसमें ऐसे गुण थे या बाद में हुए थे इसका किसी को पता ना था.  फिर भी उसने निकम्में पन की हद पार कर रखी थी. गांव गांव में घूमना और गांव के बच्चों को अपने साथ मिलाकर उन्हें भी निकम्मा बनाना है उसका रोज का काम हो चुका था. इसी वजह से गांव के सभी लोग उससे नाराज रहने लगे थे क्योंकि वह उनके बच्चों को भी बिगाड़ रहा था और अपने जैसा बना रहा था कामचोर और निकम्मा. और साथ ही साथ बड़ों का और घरवालों का आदर ना करना यह भी उनके दिमाग में भरता जा रहा था. गांव के लोग नाराज रहते थे और माता पिता निराश  रहते थे.  आखिर क्यों ना हो वह काम ही ऐसा करता था. सभी परेशान हो गए तो उन्होंने धीरज के माता-पिता से कहा कि इसे शहर भेज दीजिए शायद वहां जाकर कुछ काम-धाम करने लगे और सुधर जाए लेकिन वह नहीं माना क्योंकि उसे तो अपने मां बाप की भी बात ना मानने की आदत सी हो गई थी. वह यूं ही गांव में पड़ा रहा और अपने घरवालों को परेशान करता रहा.  उसे नए नए खेल खेलने की आदत थी. वह अक्सर जाल बिछाने वाले खेल खेलता था. गांव के बच्चों के लिए ऐसा करता था जो कि उसके जाल में फस जाते और रोते बिलखते अपने घर पहुंचते थे.  जाल ऐसे जिसमें रस्सियों का इस्तेमाल करता था, नीचे गड्ढे खोद देता था जिसमें बच्चे गिर जाते थे, रस्सी में फंस जाते थे, लकड़ियां लगा देता था जिस से घायल हो जाते थे. जिन बच्चों के साथ खेलता था उन्हें ऐसे परेशान करता था. गांव वालों की नाराजगी की वजह यही थी कि वह उनके बच्चों को भी परेशान करता था. उसका यह रवैया यूं ही चलता रहा. तंग आकर भी गांव वाले कुछ ना कर सके क्योंकि वह सुधरना नहीं चाहता था.  और गांव वालों  के वश में भी नहीं था कि वह उसे सुधार सकें. थक हार कर वो अपने बच्चों को ही मना करते थे कि उसके साथ ना खेलें. लेकिन बच्चे तो चंचल होते हैं वह उसके साथ ही खेलना चाहते थे क्योंकि उसके साथ खेलने में उन्हें मजा आता था भले ही बाद में वह घायल हो जाएं और रोते हुए घर आएँ.  ऐसा ही चलता रहा और कई साल बीत गए.  वह बड़ा हो चुका था लेकिन आदत है वैसी की वैसी.
 एक रात की बात है गांव में चोरी हो गई. किसी को खबर न हुई कि यह कैसे हुआ और चोर कब आए कैसे आए और कैसे चोरी कर गए.  गांव में उदासी का माहौल था और साथ ही साथ मन में यह डर भी था की चोरी फिर से हो सकती है.  लेकिन गांव के लोग कर भी क्या सकते थे उनके पास ऐसा कोई हथियार भी नहीं था जिससे वह चोर को रोक सकते.  सभी हतोत्साहित हो गए और 2 दिनों के बाद फिर से वही घटना घटी चोर आए और एक घर को फिर लुट गए.  गांव वालों को यह डर हो गया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह गांव पूरा बर्बाद हो जाएगा.  उन्हें कोई युक्ति नहीं सोच रही थी कि वह किस तरह से इस मुसीबत से बाहर निकले. वह सोचते ही रह गए और धीरज कुछ ऐसा कर गया जिससे चोर पकड़े गए और पूरे गांव में धीरज की वाहवाही हुई. उसने ऐसा क्या किया और कैसे चोरों को पकड़ा यह जानने के लिए सभी उत्सुक थे.  फिर धीरज ने बताया कि वह इन बातों को ध्यान में रखे हुए था कि चोर रात को आते हैं वह एक से ज्यादा की संख्या में होते हैं और उन घरों पर निशाना बनाते हैं जिन घरों के लोग जल्दी ही बत्ती बुझा कर सो जाते हैं यानी कि उस घर में ऐसा कोई जाता नहीं रहता जो उन्हें देख सके कि चोर आ चुके हैं.  और भी कई बातें उसने ध्यान में रखें और अपना बचपन का जाल बिछाने वाला खेल उन चोरों के लिए खेल दिया.  यह खेल वह हमेशा गांव के बच्चों को परेशान करने के लिए खेलता था लेकिन इस बार उसने या खेल गांव की भलाई के लिए खेला.  क्या पता उसने भलाई के इरादे से किया था या सिर्फ एक खेल था उसके लिए. लेकिन यह खेल गांव के भले के लिए इस्तेमाल हो गया. गांव में जहां से प्रवेश का द्वार था वहां पर उसने एक रस्सी लगाई हुई थी जो कि जमीन से बस थोड़ी सी ऊपर थी जो दूर से दिखाई नहीं देती थी. वह रस्सी जाकर आगे एक पेड़ से बंधी हुई थी और उस पेड़ में दूसरी रस्सी आकर बंधी हुई थी जोकि सीधा जाल को शुरू कर देती थी. जैसे चोरों ने गाँव में कदम रखा उनके पैर उस नीचे वाली रस्सी पर पड़े. उन्हे पता ना चला कि वो लोग धीरज के बनाए जाल में फंसने जा रहे हैं.  आगे बढ़ने पर वह एक ऐसे गड्ढे में जा गिरे जो ऊपर से दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि गड्ढे के ऊपर केले के सूखे पत्ते रखे हुए थे जैसे गड्ढा दिखाई ना दे. गड्ढा अंदर से कीचड़ से आधा भरा हुआ था और गिरते ही चोर कीचड़ में फंस गये. फिर उनके ऊपर रस्सी लटकने लगी उन्होंने सोचा कि हम इस रस्सी के सहारे  ऊपर चढ़कर निकल जायेंगे.  लेकिन यह रस्सी भी एक चाल ही थी.  उन्होंने जैसे ही उस रस्सी का सहारा लिया उनके ऊपर लकड़ी के टुकड़े गिरने चालू हो गये. लकड़ी के टुकड़ों से उन्हें बहुत चोट लगी और वह निकलने में बिल्कुल असमर्थ हो चुके थे क्योंकि नीचे से कीचड़ में फंसे थे और ऊपर से लकड़ी से दबे थे.  सुबह होने तक वह उसी में दबे रहे फंसे रहे.  सुबह होने पर जब गांव वाले बाहर आए तो यह सब देखकर अचंभित रह गए.  सभी का यही प्रश्न था कि यह सब किसने किया? फिर गांव के दो बच्चे थे उनमें से एक ने कहा कि ऐसे जाल तो केवल धीरज ही बना सकता है.  उन्हें यह तो मालूम था कि धीरज ऐसा कर सकता है लेकिन यह भरोसा नहीं था कि धीरज कभी गांव की भलाई के बारे में सोच सकता है. गांव वालों ने जब धीरज से पूछा तो धीरज ने सारी कहानी बताई कि किस तरह से उसने यह चाल बनाएं और चोरों को फसाया.  यह सब जानकर गांव वाले बहुत खुश हुए. और धीरज के हौसले के लिए उसको बहुत शाबाशी दी.
पूरे गाँव मे खुशी की लहर दौड़ गयी कि अब उनके गाँव मे चोरी और लूट-मार का कोई खतरा नहीं है. इस खुशी की वजह था धीरज और उसका जाल बनाने वाला खेल. इस तरह से एक काम चोर और गाँव का अप्रिय लड़का गाँव का चहीता बन गया. उसके सारे गुनाह माफ कर दिए गए. इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि यदि हमारे अंदर कोई काबिलियत है तो उसका इस्तेमाल किसी को परेशान करने में नहीं बल्कि जनहित में करना चाहिए. वर्ना वही काबिलियत हमारे लिए अभिशाप बन जाती है जैसा कि कई सालों तक धीरज के साथ था. गाँव वालों को परेशान करने की वजह से सब का अप्रिय बना रहा लेकिन अंत में अपनी काबिलियत को जनहित में लगाया और सबका प्रिय बन गया. इसलिए किसी भी काबिलियत को व्यर्थ ना करें. उसका सदुपयोग करें.

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