ASHWANI PANDEY ( ADVOCATE ) 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक चांद लेके आए हैं 17728 0 Hindi :: हिंदी
दिल की बस्ती मे ले के आयें हैं, चाँद मुठ्ठी मे ले के आयें हैं, झूठ तुम को लगे तो तुम जानो, हम तो सच्ची मे ले के आयें हैं, कोई दुल्हन हो जैसे घूंघट में, चाँद बदली मे ले के आयें हैं, चाँदनी से उसे उतारा है, रातरानी में ले के आये हैं, उसकी ख़ुश्बू बचा के रख्खी है, बन्द शीशी मे ले के आयें है, चाँद बनता है जिन लकीरों से, वो हथेली मे ले के आयें हैं, उसने बोला था करवा चौथ है तो, उसको छलनी मे ले के आयें हैं, देख लो असली चांद है कि नही, थोड़ा जल्दी मे ले के आयें हैं, ज़िन्दगी कल तलक जो भटकी थी, आज पटरी मे ले के आयें हैं!
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