Saurabh Shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Google/http://kwsvs.blogspot.com/2022/04/blog-post_23.html 49885 0 Hindi :: हिंदी
लड़ते लड़ते थक सा गया हूं । शायद हार से डर गया हूं ।। मुस्करा के गम दफनाते दफनाते थक गया हूं। शायद मुस्किलो से डर गया हूं ।। चलते चलते थक गया हूं । शायद फासले देख कर डर गया हूं ।। हर दर्द को अपना लिया है । मुस्कुरा के हर दर्द को ,अपने आप में छिपा लिया है ।। बहुतों को अपनाया अपना बनाने के लिए । हर एक ने कही न कही धोखा ही दिया ,खुद को बचाने के लिए।। अब नहीं होता ये दिखावा दिखाने के लिए । बस अब नही मुस्कुराना दर्दो को छिपाने के लिए ।।.......... .