Trilok Chand Jain 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य वक्त 16982 0 Hindi :: हिंदी
वक्त यूं ही गुजर रहा कुछ पता ही नहीं चल रहा ज़िन्दगी जी रहे हैं या ढ़ो रहे हैं जाग रहें हैं या खुली आंखों से सो रहे हैं कुछ पा भी रहे हैं या पाये हुए को भी खो रहे हैं असमंजस सी स्थितियां हैं अनसुलझी परिस्थितियां हैं कोई निर्णायक मोड़ नहीं, जिंदगी में कोई नियत दौड़ नहीं, मंजिल की बंदगी में अर्ध जीवन बीत गया, इसी कशमकश में कुछ पलों को भी नहीं जी पाया, इतना रहा विवश मैं बदल डालूं मैं मिथ्या उसूलों को भूल जाऊं मेरी भूलों को अब तो मेरे जीवन में स्वर्ण सवेरा हो जाए अब तो मेरे पैरों को मंजिल और राह मिल जाए अब तक ढोया, अब जी लूं जीवन रेंग रहा था, अब उड़ जाऊं गगन हर पल का मकसद अब अलग हो उत्साह से परिपूर्ण मेरा हर डग हो गति अब प्रगति रूप में मेरा जीवन सजाये वास्तव में इस जीवन की सार्थकता को पाएं मुट्ठी भर रस्सी अभी मेरे हाथ में है इसीलिए नीर से परिपूर्ण गगरी मेरे साथ में है शेष को विशेष बनाने का जुनून जगा लूं समय के साथ चलकर सभी लक्ष्यों को पा लूं
Working Editor of Swadhyay Shiksha Magazine. Jainism teacher. Running Ph.D in Jain Jeevan Paddhat...