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शीर्षक (गर्मी)

SACHIN KUMAR SONKER 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य GOOGLE,YAHOO/BING (गर्मी) 53266 0 Hindi :: हिंदी

शीर्षक (गर्मी)
मेरे अल्फ़ाज़
(सचिन कुमार सोनकर)
मौसम का हाल ना पूछो गर्मी से है बहाल ना पूछो।
ऎसी कूलर सब आन है फिर भी घर में  बहोत तापमान है।
ऊपर से है आग बरसती नीचे से है धरती जलती।
हवा चल रही है जैसे बगल में जल रही हो भट्टी।
बिजली का बिल जब है आता देख के जी है घबराता।
सूर्य देव गर्मी कुछ कम कर जाते थोड़ी तो राहत पहुँचाते।
अपनी किरणों को कुछ कम कर जाते, हम सब पर कुछ रहम बरसाते।
अब हमको झुलसाने का काम ना करते थोड़ी देर आराम तो करते।
बिजली का हॉल है ऐसा जैसे खेल रही हो चुपम छुपाई जैसा।
रह- रह कर गुस्सा आता है उसी मे बिजली भी कट जाता है।
सोने जाते मछर आते  जबरदस्ती  पकड़-पकड़  गाना सुनाते।
हाँथ मारो उड़   जाते  है अपनी फैमली को ले कर वापस आते ।
चूसे बिना फिर नही वो जाते  है।।
जब पेड़ नही तो ये धरती बंजर है तपिस उसकी गोद में पड़ा एक खंजर है।
जब पेड़ ही नही इस धरती पर तो ठंडी हवा कहाँ से आये गी।
क्या प्रकृति खुद धरती पर पेड़ लगाने आये गी।।
अगर साल में  हम पेड़ लगाते तापमान ना यू हर साल बढ़ते जाते।
चारो तरफ हरियाली हो प्रकृति की अद्भुत छठा निराली हो।
चलो मिल जूल कर  हम है पेड़ लगाते  इस धरती को है स्वर्ग बनाते।

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