ब्राह्मण सुधांशु "SUDH" 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जीवन, सामाजिक, समाज, प्रकृति 14055 0 Hindi :: हिंदी
हूँ ज्ञान का सागर मै! तुझे श्रेष्ठ कैसे मान लूँ!! हूँ गलत लाख मै फिर भी! अपनी गलती कैसे मान लूँ!! हैं तजुर्बे मेरी उम्र जितने लंबे! इन तजुर्बो को कम कैसे मान लूं!! बात अवश्य ही है गलत तेरी! अपनी गलती कैसे मान लूँ!! हूँ रावण जितना अहंकारी मैं! शीश अपना अभी कटा दूँ!! अहंकार से है कीर्ति मेरी! अपनी गलती कैसे मान लूँ!! हूँ तैयार भीषण युद्ध के लिए! चुनौती तेरी अविलंब मान लूँ!! होगी जीत निश्चित मेरी ही! अपनी गलती कैसे मान लूँ!! काँच सा हूं पारदर्शी मै! दुनिया को आईना दिखा दूँ!! हूँ सद्भाव सद्भावना पूर्ण मै! अपनी गलती कैसे मान लूँ!! हूँ आसमान सा ऊंचा मै! तुझसे नीचा कैसे मान लूँ!! है सूर्य सा तेज़ मुझमे! तू ही बता अपनी गलती कैसे मान लूँ!!