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मेरे पथ की चाह यही है

Sudha Chaudhary 20 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7091 0 Hindi :: हिंदी

मेरे पथ की चाह यही है,
कहते जाना,बढ़ते जाना।
जहां दिखाई दे कोई अपना,
रहते जाना,सहते जाना।
बन्द बन्द सारी परतें,
यूं ही खुलती जानी है।
अपनी बीत गयी,
सबकी बीत जानी है।
न हो अनहोनी कोई 
जीवन रथ पर चढ़ते जाना।

प्रलय रात की बिछुडन
धरातल पर आयेगी।
जब जब दीप जले कुंठा के,
साथ तुम्हारा पायेगी।
सारी कायनात से मिलकर,
बस विश्वास बढ़ाना।

मेरे पथ की चाह रही है
कहते जाना , बढ़ते जाना।

सुधा चौधरी
बस्ती

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