Santosh kumar koli 20 Oct 2023 कविताएँ समाजिक जीव गति 6032 0 Hindi :: हिंदी
एक श्येन हो सयाना, उड़ा पारापार। इठलाता, बल खाता, देखा विक्ष पसार। चिड़ी बावली, खेत खोखला, उपजे उपज़ हज़ार । सरसर- सरसर पर फैलाए, चीरे मंद बयार। चकर- मकर में भूला, फ़िक्र घर की। परवाज़ है परवान पर, परख नहीं पर की। पर में दम, क्यों कम, मति गति चर की। थकना था सो थका, उलटी फिरक गई फिरकी। टिकने को नहीं ठौर- ठिकाना, ढीली हुई चूल। भूला कलाबाज़ी, भूला ऊलजलूल उसूल। समय उफान, थमा तूफ़ान, याद आया मूल। लौटा तब तक लुट गया लाल, है हर जीव का शूल