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सफ़ेद पोश-आये हैं कुछ सफेद पोश आज हमारे गांव में

Vikas Yadav 'UTSAH' 05 Oct 2023 कविताएँ राजनितिक विकास यादव 'उत्साह', राजनीति कविता, चुनाव कविता, नेता पर कविता 11760 0 Hindi :: हिंदी

सफ़ेद पोश

आये हैं कुछ सफेद पोश 
आज हमारे गांव में
मांग रहे लोटे में पानी 
बैठे नीम के छांव में
एक नहीं हैं दो नहीं हैं
दस के दस हैं साथ में
इतना क्यों दिखा रहे दया
आज हमारे घाव पे
मानो जैसे सिंह आया हो 
भूखा -प्यासा वन में
पता नहीं क्यों हूक उठती है 
आज हमारे मन में
सिंह आखिर क्यों जाबी ओढ़ेगा?
भूखे प्यासे तन पे 
शायद कहीं ये फिर ना रख दें
नमक हमारे घाव पे
 आए हैं कुछ सफेद......
बहलाते हैं, फुसलाते हैं,
 कल का सूरज दिखलाते हैं
 गिरगिट सी बातों से मेरा
 जल जख्म सहलाते हैं 
फिर घुमा फिरा करके
 आ जाते उसी घाट पे
 दे दो साथ है तुम्हारी ही जात
 रख लो मेरी लाज को
 फिर खटक जाती ये आंखें 
सुनकर इतनी सी बात पे
 आए हैं कुछ सफेद पोश
आज हमारे गांव में।

काव्य - विकास यादव 'उत्साह'
       ( हैदरगंज, गाजीपुर,उ०प्र०)

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