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मोहब्बत का सफर-थोड़ी तहकीकात किया तो सारी कहानी पता चल गई

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत प्यार, मोहब्बत, प्रेम, लव, लव स्टोरी, प्रेम कहानी, प्यार मोहब्बत, बारिश, बरसात, बारिश में प्यार, बारिश में प्रेम, लव इन रेन 5735 0 Hindi :: हिंदी

छुट्टी का दिन था। बारिश हो रही थी। भीगे बिना नज़ारों के मजे लेने का मन हुआ। सोचा लॉन्ग ड्राइव पर चलूं। कार निकाली और घूमने निकल गया। मंजिल का कोई ठिकाना नहीं। कुछ सोच कर थोड़ी ना निकला था। मुझे तो बस भीगे बिना बारिश के मजे लेने थे। 30 की रफ्तार में धीमी आवाज में हिंदी सदाबहार गानों का आनंद लेते हुए निकल पड़ा अहमदाबाद की सड़कों पर। कहीं रिक्शा का इंतजार करते हुए भीगते लोग दिखे तो कहीं नाश्ते की लारियों पर भीगते ऑर्डर मिलने का इंतजार करने वाले। कुछ तो बारिश के मजे ले रहे थे लेकिन कुछ बारिश से परेशान हाल भी थे। जिन्हे आज भी ड्यूटी के लिए जाना पड़ रहा उनके दिल का हाल तो आप समझ ही सकते होगे। लेकिन कुछ तो मुझसे भी ज्यादा मस्तमौला दिखे जो बारिश में भीगते हुए मजे कर रहे थे। शाम के 4 बज रहे थे। बारिश अपने जोरों पर थी। गाड़ी के विंडशील्ड पर वाइपर चक्कर लगाए जा रहा था लेकिन असफल सा रह जा रहा था। पानी की रफ्तार वाइपर से ज्यादा थी ना। गाड़ी में एसी चलाने की भी जरूरत नहीं थी। माहौल ठंडा जो हो चुका था। चलते चलते 20 किलोमीटर गुजर गए पता ही ना चला। अब शाम के चाय नाश्ते का टाईम हो चुका था जिसे मैं ड्यूटी पर रहूं तब भी मिस नहीं करता हूं। बड़े होटल और ढाबा बंद हो चुके थे बारिश के प्रकोप से। ऐसे में मेरी चाय की तलब को पूरा कैसे करूं। सोचता हुआ सड़क के किनारों को ताकता हुआ आगे बढ़ता रहा। उम्मीद लगाए हुए था की शायद किसी कोने में कोई चाय की टपरी ही खुली हुई मिल जाए। आगे बढ़ा तो रोड कंस्ट्रक्शन की वजह से थोड़ा पानी रोड पर लग गया था। वहां रिक्शा वाले धीरे चलाने की वजह से ट्रैफिक जाम कर बैठे थे। सवारियां भीग रही थीं रिक्शे मैं बैठे बैठे। मेरी नजर इधर उधर घूमी तभी मुझे एक बुजुर्ग चचा चाय की एक छोटी से टपरी पर दिखे। मेरी उम्मीद जगी। मैने जगह देख कर गाड़ी रोड किनारे लगाई और चचा की टपरी पर पहुंचा। गाड़ी से टपरी तक के सफर में ही मैं थोड़ा भीग गया। अब वहां रुक कर चाय नाश्ता तो मैं बिल्कुल नही करना चाहता था। चचा से पूछा की नाश्ते के लिए कुछ है क्या? चचा बोले– समोसे हैं। मैने देखा तो हाथ लगाकर गर्माहट चेक किया। हल्के गरम थे। ताजे तो थे लेकिन मौसम की मार न ठंडा कर दिया था उन्हें। मैने बोला– चचा 4 समोसे और 20 की चाय पैक कर दो। चचा ने जवानों की तरह हाथ चलाया और 1 मिनट में ही पैक कर के मेरे आगे पार्सल बढ़ा दिया। मैने पैसे दिए और गाड़ी की ओर भागा। रफ्तार इतनी की भीग ना जाऊं बस। सीधा ड्राइवर साइड का दरवाजा खोला और घुस कर दरवाजा बंद कर दिया। गाड़ी के तौलिया रखा था उससे मैने अपने सिर को सुखाया और सोचा कि किसी शांत जगह जा कर चाय नाश्ता कर लूं। मगर ज्यादा दूर जाऊंगा तो चाय ठंडी होकर अपना मजा खो देगी। गाड़ी आगे बढ़ाने ही वाला था कि तभी मैंने देखा आगे एक रिक्शा रोड के किसी गड्ढे में फंस गया है और जोर लगा कर भी निकल नही पा रहा है। बेचारे पैसेंजर्स भीग भी रहे थे और अब आगे जाने जैसी हालत भी नही लग रही थी। क्योंकि दूसरा रिक्शा मिलना भी मुश्किल। और जब तक मिले पूरा भीग जायेंगे इंतजार में। मुझे ये सब देख कर उनकी मदद करने का मन तो हुआ लेकिन क्या कर सकता था। बाहुबली तो हूं नहीं की रिक्शा उठा कर गड्ढे से बाहर निकाल दूं। एक स्वार्थी इंसान की तरह उस जगह से नजरें फिराकर आगे बढ़ने लगा तभी उस रिक्शे से एक खूबसूरत सा हाथ बाहर निकला सहारा लेते हुए बाहर निकलने के लिए। मेरे मन में थोड़ी लालसा जगी उस हाथ वाली का खूबसूरत चेहरा देखने की। जैसे ही वो लड़की रिक्शा से बाहर निकली उसने तुरंत ही अपना सिर और मुंह दुपट्टे से बांध लिया बारिश से बचने के इरादे से। मेरी लालसा धरी रह गई। उसने रिक्शा वाले को भाड़े के पैसे दिए और रोड क्रॉस करने लगी।मैने अपना मन मारा और गाड़ी आगे बढ़ाने लगा मेरा ध्यान बगल से आती गाड़ी की तरफ गया जो तेजी से बगल से गुजरी और पानी उड़ाते हुए निकल गई। अपने बाएं साइड देखा तो किसी का हाथ दरवाजे की खिड़की पर दस्तक दे रहा था। मुझे लगा किसी को मदद चाहिए होगी। मैने खिड़की खोली तो देखा ये वही लड़की है जो रिक्शा से निकली थी। मैने पूछा– जी बताइए क्या प्राब्लम है? उसने कहा मैं जिस रिक्शा से जा रही थी वो गड्ढे में फंस गया है। प्लीज मुझे आगे तक छोड़ दीजिए। मैने तुरंत दरवाजा खोल दिया और बैठने के लिए इशारा किया। आखिर मैं अब उसी ओर जा रहा था जिधर उस लड़की का घर था। सोचा कि उसकी मदद कर ही देता हूं। वो बैठ गई लेकिन भीग चुकी थी और कांप रही थी। मेरे पास तौलिया था मैने उसे देकर कहा खुद को सुखा लो। उसने वैसा ही किया लेकिन अभी भी कांप रही थी। उसे खुद को तौलिए से पोंछता हुआ देख कर मेरे ध्यान गाड़ी चलाने से बार बार हट रहा था। वो खुद को सुखाने में लगी थी और मैं उसे निहारने में। वो कांपते हुए बैठ गई। मेरे मन की लालसा फिर से जागने लगी की इसका चेहरा कैसे देखूं। फिर अचानक याद आया चाय और समोसा। मैने साइड में गाड़ी रोकी तो उसने पूछा– गाड़ी यहां क्यों रोकी आपने? मैने चाय को कप में भरा और उससे बोला ये चाय पिलो ठंड दूर हो जायेगी और समोसा भी उसके आगे बढ़ाया। मैंने सोचा इसी बहाने उसका चेहरा तो देखने की मेरी लालसा पूरी हो जायेगी। शायद उसे भूख लगी थी उसने झट से एक समोसा उठाया और खाने लगी मैंने भी एक समोसा उठाया और खाया। वो चाय की चुस्की ले रही थी और मैं उसे देखते हुए समोसा खाए जा रहा था और उसे निहारते हुए चाय पीना ही भूल गया। अब उसने दूसरा समोसा उठाया और उसे भी खा लिया। उसकी भूख अभी भी शांत नहीं हुई थी लेकिन संकोच में उसने तीसरा समोसा नही उठाया। इतनी देर में मैंने केवल एक समोसा ही खाया था और चाय पीने लगा। उसकी आंखों में मुझे दिखा की उसे वो आखिरी समोसा भी खाना है। बारिश में भीगने के बाद भूख तो लगती ही है। मैने वो आखिरी समोसा उसकी ओर बढ़ाया और बोला कि मुझे नहीं खाना है आप खा लो। उसने हल्की सी नजर नीचे की और समोसा खा लिया। गाड़ी में पानी की बोतल रखी थी हमने पानी पिया। अब मुझे उसके अंदर शांति और सुकून नजर आया। अब वो आराम से बैठ गई और पूछा– आप 4 समोसे क्यों लेकर आए थे? मेरी आदत है मैं हमेशा एक्स्ट्रा लेकर चलता हूं। इसलिए कि शायद थोड़े में मेरा मन न भरे और बाद में अफसोस करूं। लेकिन उसके सामने अगर ये बात बोलूंगा तो उसे लगेगा कि वो मेरे हिस्से के समोसे खा गई। इसलिए मैने उसे बातों में घुमाया और बोला– मैं हमेशा एक्स्ट्रा रखता हूं कि अगर कभी कोई साथ में आ जाए तो काम चल जाए। जैसे अभी समझ लीजिए कि ये आप के लिए ही थे। वो मेरी बात से संतुष्ट हुई। मैं गाड़ी अभी भी 30 की रफ्तार पर ही चला रहा था ताकि ये सफर और उसका साथ जल्दी खत्म ना हो। उसने फिर पूछा– इतनी धीरे गाड़ी क्यों चला रहे हैं? अब हम तो बातें बनाने में खिलाड़ी हैं, जवाब दिया– ताकि अगल बगल वालों पर पानी उड़ कर ना जाए। वो फिर संतुष्ट हो गई। फिर मैने सवाल किया– आप कहां से आ रही हैं? तो उसने जवाब दिया कि किसी फ्रेंड के यहां फंक्शन में गई थी और बारिश में फंस गई। अब यूंही बातें शुरू हुईं और सफर कटता रहा। कमाल की बात है हम दोनों ने एक दूसरे का नाम नहीं पूछा लेकिन एक दूसरे का नाम जान जरूर गए। हुआ यूं कि वो अपने फ्रेंड्स की कहानियां सुनाने लगी और मैं अपने। उन कहानियों से हमने एक दूसरे का नाम जान लिया। मेरा नाम राकेश है और उसका अवनि। अब यहां एक मजेदार बात हो गई। अवनि का मतलब धरती होता है और धरती शांत रहती है। लेकिन मुझे वो बेचैन दिखी और बारिश में भीग कर ठंड से कांप रही थी। मैने ऐसा ही बोल कर उससे मजाक किया। वो भी हाजिर जवाब थी। तुरंत जवाब दिया की धरती की मिट्टी भी तो पानी से बह जाती है तो मैं भीग कर कांपने तो लगूंगी ही। बात में लॉजिक तो था। अब इन्हीं जोक्स की वजह से हम लोग आपस में खुल गए। झिझक मन से निकाल गया और हम दोस्त बन गए। इतने में उसका घर आ गया और वो गाड़ी से उतर कर जाने लगी। मैं बातें बनाने में भले ही एक्सपर्ट हूं लेकिन फोन नंबर मांगने में अभी भी झिझक थी मेरे अंदर। वो बाय करते हुए अपने घर चली गई और मैं अपना सा मुंह लेकर उसे घर ले अंदर जाते हुए देखता रह गया। फिर मैने गाड़ी आगे बढ़ाई और अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में सोचता चल रहा था कि घर तो देख ही लिया हूं अब बस किसी तरह दूसरी बार मुलाकात हो जाए तो दूसरी बार में नंबर मांगने में झिझक नहीं रहेगी। लेकिन ऐसा मौका कैसे आएगा। उन आवारा आशिकों के जैसे उसके घर के आस पास चक्कर लगाता फिरूं ऐसा तो मैं हूं नहीं। फिर क्या करूं क्या करू। सोचा की भगवान ने हमें एक बार मिलाया है तो अगर भगवान का प्लान इस फ्रेंडशिप को आगे बढ़ाने का होगा तो वही रास्ते बनायेगा। सब कुछ भगवान पर छोड़ कर मैं अपने घर पहुंच गया। घर पर खाना बन रहा था। मम्मी ने आवाज लगाई– राकेश बेटा तुम्हारे लिए खाने के क्या बनाऊं? मैं तो अवनि के खयालों में खोया हुआ था। चुप चाप अपने कमरे में चला गया और बिस्तर पर लेट कर सोचने लगा। मेरी नजरों के सामने बस अवनि का चेहरा उसकी मुस्कान घूम रहे थे। कानों में बस उसकी सुरीली आवाज ही गूंज रही थी। मैं न कुछ और देखना चाहता था और ना ही किसी और आवाज को सुनना चाहता था। उन्ही खयालों में खोया हुआ था की कब मम्मी मेरे कमरे में आ कर मुझे 2 बार आवाज देने के बाद मेरे सिर पर टपली मार कर पूछने लगी की कुछ हुआ है क्या। तब मैं अपनी खयाली दुनिया से बाहर निकला और मम्मी से दुबारा पूछा की क्या हुआ मम्मी। मम्मी को शक होने लगा की लड़का आज कुछ गडबड करके आया है। मम्मी ने डायरेक्ट पूछ दिया– कौन है वो लड़की? कहां मिल गई तुझे? इतनी बारिश में तू उसी के लिए गया था क्या? मम्मी के मुंह से ये सवाल सुन कर मैं तो सन्न रह गया। आखिर मम्मी को ये सब कैसे पता चल गया? मैने टालते हुए कहा– नही मम्मी ऐसा कुछ नही है। वो रास्ते में एक रिक्शा पानी से भरे गड्ढे में फंस गया था लेकिन बारिश हो रही थी तो मैं उनकी मदद करने के लिए नहीं जा पाया। उसी का अफसोस है और वही सब मेरी आंखों के सामने घूम रहा है। और कोई बात नही है। मम्मी बोली– बेटा मैं भी तेरी मां हूं मुझे मत पढ़ा। थोड़ी देर में खाना खाने आ जाना। वक्त हुआ और मैं खाने के लिए चला गया नीचे। मम्मी ने मेरे ही पसंद का खाना बनाया था। रोज जितना खाता था उतना नहीं खाया आज मैंने ।न जाने क्यों भूख मर गई थी। मम्मी पूछने लगी कि आज क्यों खाना ठीक से नहीं खा रहा है। मैंने कहा यूं ही बस बाहर समोसे खा लिया था तो मन नहीं है। उठा और सोने के लिए चला गया लेकिन रात भर बिस्तर पर पड़ा रहा और नींद थी जो आने का नाम नहीं ले रही थी। रात भर करवटें बदलता रहा। और इसी बेचैनी में रात कट गई। सुबह उठा तैयार हुआ और ड्यूटी के लिए निकल गया। वर्क लोड मिला तो अवनि के बारे में भूल गया। शायद इसलिए भी कि दुबारा मिले ना मिले। अपने काम में लग गया और अवनि को बिल्कुल भूल गया। कुछ दिन गुजरे और किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में अवनि के घर की तरफ ही जाना हुआ। गया भी लेकिन कुछ याद ही नहीं आया। ना जाने ऐसा क्या हो गया था मेरी याददाश्त को। चाय पीने के लिए टपरी पर गया। वहीं किसी लड़की की आवाज ने मुझे पीछे से पुकारते हुए तंज कसा– साहब को तो अब मुड़ कर देखना भी गंवारा नही है। बढ़िया है। लोगों को भुलाते और बदलते देखा है लेकिन इस कदर पहली बार देख रही हूं। मैं पलटा। वो अवनि थी। उसकी आंखों में मुझे देखने की खुशी भी थी और उसे नजरंदाज करने का गुस्सा भी। उसे लगा मैने उसे नजरंदाज किया है। मैने उसे समझाया की मैने तुम्हे देखा ही नहीं। उसने बोला– हां जी आप क्यों देखने लगे हमें। अब मैने खुद को बचाते हुए कहा– चलो अब झगड़ना बंद करो। समोसे खाओगी?

वो हंसी और मान गई। समोसा खाते हुए हम बातें करने लगे। ये मान सकते हैं की वो मेरी और अवनि की अगली डेट थी। उसी वक्त हमारा नंबर एक्सचेंज हुआ। दोनो अपने रास्ते चल दिए। अब मेरे मन में शांति हो गई कि अब तो नंबर हो गया है दोनो लोगों के पास। जब मन होगा बातें हो जाएंगी। शाम को घर पहुंचा और मम्मी से बहुत खुशी से बात किया। मम्मी फिर बोली– नंबर मिल गया क्या? मैं फिर सन्न रहा गया। वो कहते हैं ना मम्मी रोक्स राकेश शॉक्ड। बस वही दृश्य था। पीछे से पापा बोले– किसका नंबर? अब मेरे मन में जिस भाव की उत्पत्ति हुई वह था वीभत्स। मैं डर के मारे कांपने लगा कि कहीं मम्मी राज ना खोल दें जिसका उन्हें पक्का मालूम भी नही है। आखिर मम्मी को कैसे मेरे बारे में इतना एक्यूरेट पता चल जाता है? मैं वहां से जान और इज्जत बचा कर भागा। रात को खाने के बाद अवनि के खयालों में खोया हुआ था। सोचा मोबाइल चला लूं। अभी 2 मिनट ही हुए थे कि एक मेसेज आया। अवनि का। क्या कर रहे हो? मेरे अंदर का शायर जाग गया। जी बस आपकी यादों के बोझ के तले दबे हुए हैं। जवाब– काश हम वहां होते तो वजन और बढ़ा देते बोझ का। बातें यहां से शुरू हुईं और सुबह के 5 बज गए बात करते करते। गुड नाईट और गुड मॉर्निंग दोनों एक साथ करके वो सो गई। मुझे लगी प्यास और मैं पानी पीने के लिए कमरे से बाहर निकला। उसी वक्त पापा भी जगे थे। मुझे देख कर बहुत खुश हुए कि बेटा आज बड़ी जल्दी जग गया है। शाबाशी दी और बोले रोज इसी वक्त उठो जिंदगी में कामयाब हो जाओगे। अब उन्हें कैसे बताऊं कि मैं सोया ही नहीं रात भर। इतने में मम्मी भी आ गई। अब मुझे फिर दर लगने लगा कि मम्मी फिर से कोई बम ना फोड़ दें। और वैसे भी अब तो सोने को मिलने वाला नही है। पापा नहाने चले गए और मैं पानी पीने लगा। मम्मी पास आकर बोली– इतनी देर तक बात मत किया करो। वरना नींद पूरी नहीं होगी तो ड्यूटी के वक्त सोने लगोगे। अब मेरी सब्र का बांध टूट गया और मैने मम्मी से पूछ ही दिया कि आपको कैसे पता चल जाता है मम्मी। हर बार आपने सही बात कैसे बोल दी। मम्मी बोली– बेटा मैं तेरी मां हूं मां। मैने बोला– मान गया माते। ड्यूटी टाईम हुआ और ड्यूटी के लिए निकल गया। ऑफिस में बैठा था। कुछ काम नहीं था तो झपकी आने लगी। डर लग रहा था की बॉस ना देख लें। उठ कर टहलने लगा। नींद भागी तो फिर से ऑफिस में बैठ गया। फिर वही सिलसिला। तभी अवनि मेसेज आया। और नींद इस कदर उड़ी की लग रहा था रात को भी नींद नहीं आएगी। छुप छुप के मेसेज का जवाब देने लगा। ऐसे ही सिलसिला जारी रहा कुछ महीने बीते। मेरे मम्मी पापा ने मेरी शादी की बात करनी शुरू कर दी। मैं सोचने लगा कि मैं कैसे अवनि के बारे में मम्मी पापा से कहूं। मम्मी से एक बार को कह भी सकता हूं। उन्हें थोड़ी तो जानकारी है ही। बस बताने की जरूरत है कि बस मुझे अवनि चाहिए। मम्मी पापा के आस पास ही रह रही थीं तो बोलने की हिम्मत नही हो पा रही थी। अचानक पापा ने एक लड़की देखने जाने के बारे में मुझे बताया कि शाम को चलना है। मैं सोचने लगा कि किस तरह से मना करूं कि पापा नाराज न हों और मेरी भावना को समझें। मम्मी को अपनी टीम में करना जरूरी था क्योंकि वो ही थीं जो डूबते को तिनके का सहारा दे सकती थीं। मौका मिला और मैने मम्मी को अकेले में पाकर उन्हें मैटर बताया। मम्मी ने बोला– मैं कुछ नहीं कर सकती तेरे पापा के आगे। उन्होंने फैसला कर लिया तो बस फाइनल। अब वो कह रहे हैं तो लड़की देख ले। और उन्हें पसंद आ गई तो रिश्ता भी पक्का हो जायेगा। मैने बोला– मम्मी समझने की कोशिश तो करो। तब तक में पापा आ गए। मेरी बोलती बंद हो गई। शाम को तैयार हुए और लड़की देखने चल दिए। इधर अवनि का मेसेज आया कि उसे किसी लड़के को देखने जाना है। अब मेरी टेंशन और बढ़ गई कि खुद को बचाएं या अवनि को। दोनो तरफ से फंस गए। किसी एक का भी रिश्ता जबरदस्ती फाइनल हो गया तो अपनी नैय्या तो डूब ही गई न। इसी टेंशन में हम एक रेस्टोरेंट में पहुंचे। सामने अंकल आंटी और उनकी लड़की बैठे हुए थे। मैने नमस्ते किया और सिर नीचे झुका कर बैठ गया। ऊपर देख ही नहीं रहा था बस बचने के रास्ते सोच रहा था। इधर अवनि के मेसेज पे मेसेज आ रहे थे। फोन वाइब्रेट कर रहा था पॉकेट में लेकिन सब के सामने निकालूं कैसे। करीब 17 मेसेज आ चुके थे। मम्मी पापा ने आपस में बातें की और मुझसे बोले– बेटा लड़की कैसी लगी तुम्हें। मैं कुछ बोलने से पहले सोचा कि एक झलक देख लूं आखिर है कैसी। वैसे भी पापा का डिसीजन फाइनल ही होता है। उन्हें तो वैसे भी लड़की पसंद आ गई थी। मैने धीरे धीरे नज़रे ऊपर की जैसे किसी पेसेंट के आंख का ऑपरेशन होने के बाद डॉक्टर कहता है बेटा धीरे धीरे आंखें खोलो। बस वही हाल मेरा था। जैसे ही मेरी नजर लड़की पर पड़ी मैं चौंक गया। ये तो अवनि ही है। ये कैसे हो गया। वो मुझे घूरे जा रही थी। मैं डर सहमा सा उसे देख रहा था। दोनों के पैरेंट्स ने हमे अकेले में बात करने को कहा तो हम अकेले में चले गए। अवनि ने बस इतना कहा कि अपना फोन देखो। मैने उसके मेसेज देखे तो उसने लिखा था–

ये मैं ही हूं नजरें ऊपर कीजिए

अरे ऊपर तो देखिए

मेसेज क्यों नही देख रहे।

एक बार तो देखो यार

अरे कोई इस बेवकूफ को समझाओ कि एक बार ऊपर देखे

ऐसे ही 17 मेसेज थे। वो मुझे पहली बार एंट्री करते हुए ही देख चुकी थी। और तब से ही मुझे मेसेज कर रही थी। उसे पता था कि मैं किसी और को देखूंगा भी नही। हम बहुत खुश थे। लेकिन ये नही समझ पा रहे थे कि ये सब आखिर हुआ कैसे। मम्मी ने तो मेरी पूरी बात भी नही सुनी थी। क्या फिर आ मम्मी ने मुझे शॉक दिया है। चलो जो भी हो इस गुत्थी को बाद में सुलझाएंगे। अभी दोनो खुशी से पैरेंट्स के पास गए। फॉर्मेलिटी पूरी हुई। लड़के को लड़की पसंद है लड़की को लड़का पसंद है। सब फाइनल हुआ और अपने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में गाड़ी में मैं मम्मी से धीरे से कान में पूछ रहा था की आपको कैसे पता अवनि के बारे में। मम्मी ने बोला मुझे कुछ नहीं पता। तेरे पापा बोले कि एक अच्छा रिश्ता है देखने चलना है तो मैं बस तैयार हो गई। बगल में बैठे पापा ने मेरी फुसफुसाहट सुन ली और बोले– बेटे मैं तेरा बाप हूं। तेरी रग रग से वाकिफ हूं। इस बार पापा रोक्स राकेश शॉक्ड। थैंक यू पापा।

सगाई हुई। शादी हुई। जिंदगी अच्छे से गुजरने लगी। 2 साल के बाद मैने पापा से पूछने की हिम्मत की तो पापा ने बताया– बेटा जब मैने तुम्हारे तेवर बदले हुए देखे थे तभी मुझे शक हुआ था कि साहबजादे को इश्क हो गया है। थोड़ी तहकीकात किया तो सारी कहानी पता चल गई।

मां बाप हमारी खुशी के लिए क्या कुछ करने को तैयार नहीं रहते। हमे भी उनकी खुशी के लिए हमेशा उनके दिल की करनी चाहिए। जैसे उन्होंने मुझसे पूछे बिना मेरी चाहत के बारे में जान लिया और उसे पूरा भी किया वैसे ही हमे भी उनके सपने पूरे करने के लिए जी जान लगा देना चाहिए। ये थी मेरी छोटा सा मोहब्बत का सफर और अब मुझे मेरी मोहब्बत की मंजिल मिल चुकी है। उसे संभालना मेरी जिम्मेदारी है। उसके लिए भी मैं जी जान लगा दूंगा।

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