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टपोरी -एक शहर के मसीहा

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग टपोरी, लुक्खे, बदमाश, गुंडे, शैतान, सुधर गए, साथ देने वाले, रखवाले, अच्छे इंसान, मसीहा 6181 0 Hindi :: हिंदी

यह कहानी उन दो  लड़कों की है जिन्हें सब टपोरी कहा करते थे. जिनका नाम था आफताब और फैजान. दोनों को लोग टपोरी इसलिए कहते थे क्योंकि उनके ऐसे काम ही थे कि वह काम नहीं कांड कहलाते थे. दोनों ही हमेशा लड़ाई झगड़े में लगे रहते थे. पूरे शहर में उनकी गुंडागर्दी चलती थी. दुकानों से हफ्ता वसूली किया करते थे और जो मना करे उसे इन दोनों का कहर झेलना पड़ता था. उनका दिन मार पीट से शुरू होता था और मारपीट पर ही ख़त्म होता था. हर इंसान उन्हे यही कहता था - टपोरी हैं टपोरी हैं. उनके टपोरी बनने की कहानी उनके बचपन से शुरू होती है. दोनों चचेरे भाई थे. बचपन में दोनों एक ही स्कूल में साथ - साथ पढ़ते थे. पढ़ाई से ज्यादा दोनों का मन घूमने में लगता था. अक्सर स्कूल से भाग कर घूमने निकल जाते थे. फिल्में देखने का शौक भी उन्हे कम न था. हफ्ते में 2 दिन सिनेमाघर जरूर जाते. घर के लाडले थे तो घर से खर्च के लिए पैसे मिला करते थे. उन पैसों को खर्च करना उन्हे बखूबी आता था. जब तक पकड़े नहीं गए सब कुछ अच्छा चल रहा था. एक दिन स्कूल में उनसे जलने वाले लड़के ने उन्हें बाहर भागते हुए देख लिया और उनकी शिकायत प्रधानाचार्य से कर दी. अगले दिन प्रधानाचार्य ने उनकी बराबर तरीके से कक्षा ली. बल भर कुटाई होने के बाद दोनों का गुस्सा सातवें आसमान पर था. जिसने उनकी शिकायत की थी स्कूल के बाद गेट के बाहर दोनों ने उससे अच्छे से मुलाकात की. वो लड़का लंगड़ाते हुए घर पहुंचा. ये आफताब और फैजान के ज़िन्दगी की पहली मारपीट थी. उन्हें बहुत मज़ा आया और अगले दिन कोई उस लड़के ने डर के मारे कोई शिकायत नहीं की तो कोई सज़ा ना मिलने की वजह से मन से डर भी निकल गया. उस लड़के की पिटाई के बारे में जानकार कक्षा के सभी लड़के दोनों से बहुत डरने लगे थे. अब दोनों सब को परेशान करते और कोई उनके खिलाफ कुछ ना बोल पाता. एक दिन सब ने दोनों से बदला लेने को सोचा और एकजुट होकर उन दोनों पर हमला कर दिया. उस दिन अचानक हुए हमले से दोनों खुद को ना बचा पाए लेकिन बदला लिए बिना मान जाएँ आफताब और फैजान इतने कमजोर भी ना थे. अगले ही दिन डंडों के साथ सब का स्वागत करने के लिए दोनों स्कूल के बाहर इंतज़ार कर रहे थे. जैसे ही सब बाहर निकले उन पर डंडों की बारिश शुरू हो गई. कुछ का सिर फूटा तो कुछ का हाथ टूटा और कुछ का पैर टूटा. दोनों ने मिलकर सब का बुरा हाल कर दिया. ये मामला किसी से छुपने वाला नहीं था. स्कूल में खबर पहुंची तो प्रधानाचार्य ने 
दोनों के माता - पिता को मिलने के लिए बुलाया. जब वो लोग स्कूल आए तो उन्हे दोनों की शिकायत कर प्रधानाचार्य ने ये कहा कि ये दोनों बहुत बदमाश हैं. हमेशा लड़ते - झगड़ते रहते हैं. ये हमारे स्कूल में पढ़ने लायक नहीं हैं. आप इन दोनों को ले जाइए. ये कह कर प्रधानाचार्य ने दोनों को स्कूल से निकाल दिया. माँ - बाप को ये जानकर बहुत दुख हुआ कि उनके लाडले इतने बदमाश हो चुके हैं. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, इन्हें कैसे सुधारें. उन्हे लड़कों की गलतियों पर बहुत गुस्सा भी आ रही थी तो घर जाकर दोनों की खूब पिटाई हुई और रात को खाना भी नहीं मिला. माँ - बाप ने सोचा कि शायद अब तो सुधर ही जाएंगे लेकिन अब तो बदमाशी उनके चरित्र में बस चुकी थी वो सुधारने वाले नहीं थे. एक दिन सज़ा मिली अगले ही दिन बाज़ार मे कक्षा के लड़कों को घेर कर पीट दिया. खबर घर पहुंची तो फिर सज़ा मिली. ऐसा रोज़ होने लगा तो घर वालों ने गुस्से मे दोनों को कमरे में बंद कर दिया. आधी रात को दोनों ने मिलकर कमरे की खिड़की तोड़ दी और घर से भाग निकले. रातों - रात दोनों शहर पहुंच गये. सुबह हुई तो दोनों को बहुत ज़ोर से भूख लगी. जेब में पैसे तो थे नहीं. खाना कहाँ से खरीदते?भेल पूरी की दुकान पर पहुंचे और 2 भेल पूरी लेकर खा लिया. जब दुकानदार ने पैसे मांगे तो दोनों को गुस्सा आ गया और दोनों ने उसे पीट दिया. ये उस शहर में उनकी पहली दादागिरी थी. लोगों ने देखा तो सब कहने लगे- ये दोनों टपोरी हैं क्या? उस दिन से दोनों ने शहर पर अपनी धाक जमाना शुरू कर दिया. जिसकी दुकान से जो लेना चाहते ले लेते और पैसे मांगने पर मारपीट करते. धीरे - धीरे बाज़ार में उनका खौफ फैल गया. अब उन्हे कोई नहीं रोकता था. उनका जो मन वो करते. सिनेमा देखने का शौक भी तो था उन्हे. उसके लिए पैसे चाहिये थे. काम तो कुछ करते नहीं थे तो पैसे कहाँ से आते. बाज़ार गए और एक दुकानदार को धमकाया और पैसे मांगे उसने डर कर पैसे दे दिए. धीरे - धीरे शहर में उनकी धाक बहुत अच्छे से जम गयी. वो शहर में इस तरह राज करते जैसे दोनों वहाँ के राजा हों. दोनों टपोरी शहर के राजा बन चुके थे. बड़े - बड़े गुंडे उनको बुलाने आते थे अपने नीचे रख कर काम करवाने के लिए. लेकिन कोई राजा कभी भी किसी की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेगा इसलिए उन सब को दोनों से मुँह की खानी पड़ती थी. कोई भी दूसरा गुंडों का समूह शहर मे अपना कहर नहीं दिखा पाता था. आफताब और फैज़ान के क्षेत्र में घुस कर अपना दबदबा बनाने की हिम्मत किसी की नहीं हो पाती थी. 
दोनों की एक ख़ासियत थी, भले ही सबको परेशान करते थे लेकिन किसी परेशान को कभी परेशानी में नहीं डालते थे. एक दिन दोनों ने एक ठग बनिया को एक गरीब बूढ़ी औरत को सामान कम तौल कर देते हुए देखा तो बनिया की दुकान में घुस गए और बोले कि हमें भी कुछ सामान लेना है. फिर वो चीनी भरते 5 किलो और गिनते 1 किलो, चावल भरते 10 किलो और गिनते  2 किलो. बनिया समझ गया कि उसकी चोरी दोनों ने पकड़ ली है. वो कुछ बोलने ही वाला था तभी फैजान ने एक थप्पड़ उसके सिर पर जड़ दिया और बोला - चोरी करता है. बेचारी गरीब को लूटता है. फिर आफताब ने वो सारा सामान उस बूढ़ी औरत को दे कर उसे भेज दिया. फिर दोनों बाहर निकले तो बनिया बड़बड़ाने लगा - खुद टपोरी हैं सब को लूटते हैं और मुझे चोर कहते हैं. लेकिन दोनों ने काम तो अच्छा किया था जो उस बनिए की ठगी का उसे सबक सिखाया. 
कुछ दुकानदार और पूंजीपति जो दोनों से त्रस्त थे उन्होने दोनों को सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ पुलिस को कुछ सबूत दे दिए और पुलिस ने उन्हें सबूत के बल पर गिरफ्तार भी कर लिया. उनका जुर्म साबित हो गया और दोनों को 3 महीने की जेल हो गयी. 3 महीनों के बाद जब दोनों जेल से छूटे तो अपने क्षेत्र का हाल देखकर सोच में पड़ गए. सब का बहुत बुरा हाल था. किसी की दुकान में भरपूर सामान नहीं था. कुछ उदास बैठे थे तो कुछ रो रहे थे. दोनों चाय की दुकान पर चाय पीने गए तो चाय वाले ने दो कप चाय दिया और उनके पास सिर झुकाए खड़ा था. दोनों से कुछ नहीं बोल रहा था. फैजान से रहा नहीं गया तो वो बोल पड़ा - क्या हुआ है? सब इतने उदास क्यूँ हैं? चाय वाला बूढ़ा रोते हुए पिछ्ले 3 महीने की दास्तान सुनाने लगा. बूढ़े ने बताया कि आफताब और फैजान के जेल जाने के बाद दूसरे शहर के गुंडों ने अपनी गुंडागर्दी दिखाना शुरू कर दिया. सब को बेवजह पीटते और सारा पैसा और सारा सामान उठा कर के जाते. बहन - बेटियों को छेड़ते और परेशान करते. उन्हे रोकने कोई जाता तो उसे बहुत मारते. ऐसा ही 3 महीने चला है. हमे अब समझ आ गया है कि आप दोनों थे तो हमारा शहर और हमारा क्षेत्र कितना सुरक्षित था. ये सब सुन कर दोनों का दिल भर आया. आफताब बोला - अब हम आ गए हैं ना अब इस शहर के बुरे दिन ख़त्म. अभी दोनों चाय की दुकान पर ही थे तभी दूसरे गुंडे शहर के बाज़ार में घुसे और लूटमार चालू कर दिया. जैसे ही एक गुंडा चाय की दुकान में घुसकर फैजान का ज़ोर का हाथ जब उसके ऊपर पड़ा तो वो दुकान के बाहर जा कर गिरा. उठ कर भागते हुए अपने सरदार के पास पहुंचा और डरते हुए हकलाहट में बोला - आफताब और फैजान. ये नाम सुन कर सरदार की भी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. उसके पास कई आदमी थे तो दोनों से लड़ने के लिए उसने अपने आदमियों को भेजा. आफताब और फैजान ने एक - एक करके सब को पछाड़ दिया और मार भगाया. अब आई सरदार की बारी तो सरदार को आफताब का एक हाथ पड़ते ही सरदार दोनों से माफी मांगने लगा क्यूंकि जनता था कि दोनों से जीत तो पाएगा नहीं. बेवजह जोश में आकर इज्जत का फालूदा और हड्डियों का चूरा बनवाने का कोई फायदा नहीं. दोनों बोले कि ये हमारा क्षेत्र है यहां केवल हमारा राज चलेगा. दुबारा यहां नज़र आए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. उसने बोला कि आज के बाद मैं या मेरा कोई आदमी यहां नज़र नहीं आएगा. उसके जाने के बाद सब ने दोनों को खुशी से अपने कंधों पर उठा लिया और बोले - ये टपोरी नहीं हैं. ये तो हमारे मसीहा हैं. दोनों भले ही सब से हफ्ता वसूली करते थे लेकिन उनकी वजह से सब सुरक्षित थे. सब को समझ आ गया था तो सब खुद ही अपनी सुरक्षा के लिए शुल्क के रूप मे हफ्ता देने लगे. दोनों को सब अपने परिवार के सदस्यों की तरह समझने लगे. इस तरह से 2 टपोरी एक शहर के मसीहा बन गए.

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