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झूठी शान के खातिर.....

Meena ahirwar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कविता- वास्तविकता पर आधारित 10863 2 5 Hindi :: हिंदी

झूठी शान के खातिर देखो , 
 लोग क्या से क्या कर जाते है । 

रावण को कहते है दोषी , 
 क्या स्वयं राम बन पाते है । 

 मरे हुए को हर बार जलाते  , 
  पर्व के रुप में इसे मनाते । 

कहते है अधर्म पर धर्म की  , 
 असत्य पर सत्य की विजय हुई । 

 इन शब्दों का मूल्य ही क्या जब आज भी, 
लोगों के मन में अधर्म की नींव गड़ी। 

पुतले को जलाने पर गर्व करने वालो, 
 क्या मन में बैठे रावण को जला पाये हो । 

स्वयं पर अब तक न पाई विजय, 
फिर विजयदशमी क्यों मनाते हो। 

 उद्देश्य- इस कविता का मूल्य उद्देश्य किसी की  धार्मिक भावना को ठेस पहुँचना नहीं है। 
बल्कि हमारे अंदर जो बुराई है उसे भी जला कर खत्म करना है। 

Comments & Reviews

AJAY ANAND
AJAY ANAND वाह शानदार 👌

1 year ago

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Meena ahirwar
Meena ahirwar Thanks

11 months ago

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