Bholenath sharma 16 Jan 2024 कविताएँ समाजिक जीवन हे कि आना जाना 2211 0 Hindi :: हिंदी
जीवन है कि आना जाना जन्म हुआ फिर हे बचपन आना बचपन आया फिर यौवन आना यौवन आया फिर बुढ़ापा आना फिर छोड़ धाम वही जाना जीवन है कि आना जाना कुछ इनके संग कुछ उनके संग फिर उतर जाती है। खुशियों का रंग फीका पड़ने लगता है। भावो मे कोई और उमड़ने लगता है। फिर वहाँ जाकर कुछ पल जीते है फिर एक अन्तिम पल आता है। अपने पराये रिश्ते नाते दौलत शोहरत छोड़ चले जाते है।