Swami Ganganiya 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य क्यो इतना गरज रहे हो,poem 72525 0 Hindi :: हिंदी
पंछी की तरहा आसमान में घुम रहे हो तुम। कब बरसोंगे आसमान से क्यो इतना गरज रहे हो तुम। बादल,घटा, सावन बनके छा रहे हो तुम। जैसे हवा का झोका बनके प्राकृति को बहला रहे हो तुम। ठण्डी बौछारों से धरती को नहला रहे हो तुम। अब बरसे हो कई रोज से करके कोई बहाना बरस रहे हो तुम। ना जाने किस उमंग में गरज रहे हो तुम। पंछी की तरहा आसमान में घुम रहे हो तुम। कब बरसोगे आसमन से क्यों इतना गरज रहे हो तुम।... अब नयी उमंग से हर जगह बरस रहे हो तुम। हवाओं के धूल कणों से जैसे खेल रहे हो तुम। उनको समझ के दुश्मन अपना धरती में मिला रहे हो तुम।... Swami ganganiya