SACHIN KUMAR SONKER 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक GOOGLE 79728 0 Hindi :: हिंदी
शीर्षक (गुज़रा ज़माना) मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर) वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है। जब माँ के गोद में बैठ के खाना खाते थे, पिता के कंधे पर स्कूल जाते थे। माँ का गोद में लेकर लोरी सुनाना। पिता से हर जिद को पुरा कराना। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।। स्कूल से आते ही खेल में जुट जाते थे, अँधेरा होने पर ही घर में आते थे। होमवर्क ना करने पर बहोत मार खाते थे। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।। रोज़ वादा करते थे ना करने का, फिर भी वही दोहराते थे। सुबह को लड़ते थे शाम को फिर एक हो जाते थे। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।। गर्मी की छुट्टी में नानी के घर जाते थे। खूब मज़ा उड़ाते थे नाना नानी रोज कहानी सुनाते थे। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।। वो कागज की कस्ती चलाना, नानी का वो परियों की कहानी सुनाना, सावन में वो पेड़ों पर झूला झूलना। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।। दादा दादी के लाड़ले बन जाते थे , मारने से पहले माता पिता दादा दादी से घबराते थे। आँख में अश्रु आने से पहले ही वो झट से गले लगाते थे। वो गुज़रा ज़माना बहोत याद आता है।।