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हे ईश्वर! दे वो शक्ति।

Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 14107 0 Hindi :: हिंदी

सांस की उलझी डोर है, मन भी हारा हुआ है;
होगा यही परिणाम अगर तो फिर अपना शान क्या हो?
हे ईश्वर! दे वो शक्ति-की ये जग वरदान सा हो।

अपने-अपनो से मिलने में दूरियों को नापते हैं,
अपने-सपनो को सिलने से जीवन में ही भागते हैं,
हो यही भागम-भाग अगर तो दिन क्या हो? रात क्या हो?
हे ईश्वर! दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो।

श्वेत-सवेरे के खोज में, रात में ये अंत बना है;
साया - छाया है ये ऐसे जैसे रास्ते में रावण खड़ा है;
कर दो ये उपकार ऐसा की सवेरा राम सा हो;
हे ईश्वर! दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो।

मन्दिर से मैं निकला हूँ, तुम मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे से निकलना,
मिलकर जोड़ते हैं हाँथ और कहें कि भला हर इंसान का हो;
ये जीवन कठिन बहुत है, कर दो कुछ आसान सा हो;
हे ईश्वर!दे वो शक्ति की ये जग वरदान सा हो।

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