Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक शिक्षा की पहुंच 50555 0 Hindi :: हिंदी
जाज्वल्यमान मणि, चमचम चमक रही है। दृष्टिवंत क़िस्म, मणिमय दमक रही है। तीक्ष्ण रश्मि अंतरायण, वहीं सिमट रही है। रश्मि से रश्मि, बेमन लिपट रही है। चाहती, सुदूर टेढ़ी-मेढ़ी, अंधेरी गलियों के छोर को छूना। लंबी अंधियारी काली रात के, भोर को छूना। विस्फोट, विकीर्ण हो, कर दे एकमेक। ज़र्रे- ज़र्रे में समाहित, ज़र्क -बर्क़ प्रत्येक। छनकर नहीं, तनकर फैले। बना ले हर क़िस्म की, गली में गैले।